बुरे न बनें हम कभी
बुरे न बनें हम कभी
अर्थशास्त्र का साधारण नियम है की जितनी अपनी क्षमता हो उतने में ही काम करो। जो लोग इस नियम के आधार पर अपना काम करते हैं उनके काम सुचारू रूप से होते हैं और जो बिना सोचे समझे विचारे काम करते हैं उनका काम बिगड़ जाता है इसीलिए चादर देखकर पैर फैलाने में ही बुद्धिमानी है । जो लोग अपनी सीमा के अंदर रहते हैं उन्हें कभी तकलीफ उठानी नहीं पड़ती है ।मन की कोमलता और व्यवहार में विनम्रता से वह कार्य भी बन जाते हैं जो कठोरता से नहीं बन पाते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि डरा -धमकाकर, अहसान जताकर किसी को जीते तो क्या जीते? किसी को जीतना है तो ह्रदय की नम्रता से जीतो।जब भी किसी को सहायता की जरूरत हो तो मदद जरूर करनी चाहिए । सबसे अच्छी सहायता वह होगी जहां वे खुद जीवन में आगे बढ़ने और अपना ख्याल रखने के काबिल बन सके।
क्षमा वीरों का आभूषण है ।क्षमा मांगने से मन में शांति रहती हे। क्षमा करने से बड़प्पन दिखता ह़ै। क्षमा लेना व देना नफरत और क्रोध का निदान है क्रोध सदैव ही सभी के लिए अहितकारी होता है और क्षमा सदा सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होता है।अतः हम अपना व्यवहार सदा सरल, मधुर रखें ।हम अच्छे के साथ तो अच्छे बनें ही पर बुरे के साथ भी कभी बुरे नहीं बल्कि रहें अच्छे ही। हरदम एक बात याद रखें की किसी ने अगर हमारा बुरा सोचा अथवा बुरा किया हैं तो उसने अपने व्यवहार से अपना स्तर दिखा दिया।
प्रदीप छाजेड़
( बोंरावड़ )