परीक्षा में सुरक्षा की कमजोर कड़ियां
विजय गर्ग
सर्वोच्च न्यायालय अब चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए आयोजित की गई पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट-यूजी 2024 से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई अगले हफ्ते करेगा। पिछले महीने नतीजे घोषित होने के बाद से ही राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए की साख पर देशभर में सवाल उठ रहे हैं। पटना पुलिस ने अदालत में दावा किया था कि नीट-यूजी का पर्चाफोड़ हुआ है। इस साल नीट-यूजी के लिए तेईस लाख से अधिक उम्मीदवारों ने पंजीकरण कराया था।
पर्चाफोड़ की इस घटना ने सरकार के सामने संकट खड़ा कर दिया है। यूजीसी नेट परीक्षा भी आयोजित होने के एक दिन बाद रद्द कर दी गई थी। हाल ही में लगातार चार परीक्षाओं- नीट-यूजी, यूजीसी नेट, सीएसआईआर-नेट और अब नीट पीजी प्रवेश परीक्षाएं या तो रद्द या स्थगित कर दी गईं, जिससे करीब सैंतीस लाख अभ्यर्थी और उनके अभिभावक सीधे प्रभावित हुए हैं। इन पर्चाफोड़ से न न सिर्फ लाखों छात्रों का भविष्य दांव पर है, बल्कि एनटीए की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे है। पूरी जांच के बाद ही परतें खुलेंगी, पर र एनटीए पर उठ रहे सवालों के पीछे सबसे बड़ी वजह है निजी एजेंसियों को दिया जाने वाला ठेका। भारत में अक्सर पर्चाफोड़ की खबरें आती रहती हैं। यह बीमारी कोई नई नहीं है , इसके चलते पहले भी कई परीक्षाओं को रद्द करना पड़ा है 1997 में आइआइटी जेईई और 2011 में आल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं पर्चे भी बाहर आ चुके । यह एक ऐसा नासूर है जो समय के साथ और ज्यादा गहरा होता गया है। मीडिया रपटों के मुताबिक पिछले सात वर्षों में देश के अलग-अलग राज्यों में सत्तर से अधिक परीक्षाओं के पर्चाफोड़ हुए हैं, जिससे करीब दो करोड़ युवाओं का भविष्य प्रभावित हुआ है। पर्चाफोड़ और परीक्षा रद्द होने की खबरों के साथ युवाओं के सपने चकनाचूर हो जाते हैं। साथ ही, मां-बाप द्वारा पेट काट कर भेजा गया पैसा भी व्यर्थ चला जाता है। सरकारें इसे लेकर गंभीर रहीं हैं, जिसका जवाब ये युवा उम्मीदवार कई सालों से तलाश रहे हैं। हर बार जब तक जांच होती है, तब तक दूसरा पर्चाफोड़ हो जाता है।
राज्यों में भले सरकारें अलग-अलग पार्टियों की हैं, मगर पर्चाफोड़ का तरीका सब जगह एक जैसा है। अव्वल तो परीक्षाएं नियमित अंतराल पर होती नहीं, पद सालों-साल खाली पड़े रहते हैं, लेकिन भर्ती नहीं होती और जो होती भी है, वह पर्चाफोड़ की भेंट चढ़ जाती है। पचफोड़ की अलग-अलग विधि होती है, जैसे असम में परीक्षा शुरू होने के के कुछ सेकंड में पूरा पर्चा वाटूर वाट्सएप पर पर प्रसारित कर दिया गया। मध्यप्रदेश पर्चाफोड़ के आरोपियों ने मुंबई की उस कपंनी के सर्वर में सेंधमारी की थी, जिसे परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। वहीं, यूपी पुलिस भर्ती परीक्षा में परिवहन निगम की जिस कंपनी को पर्चे छापने के बाद गोदामों में रखने की जिम्मेदारी दी गई, उसकी मिलीभगत से पर्चाफोड़ किया गया था। कई बार परीक्षा केंद्रों से भी पर्चाफोड़ किया जा चुका है।
पर्चाफोड़ न रोक पाना एक अक्षम्य अपराध है। यह केवल परीक्षा व्यवस्था खामी नहीं, बल्कि लाखों युवाओं के सपनों को चकनाचूर करने का अपराध है। भारत की लगभग 65 फीसद आबादी युवा है। उनके सपने बड़े हैं। वे परिश्रमी और प्रतिभाशाली हैं, तमाम कठिनाइयों एवं अभावों से लड़ते जूझते कई-कई वर्षों तक इन प्रतियोगी परीक्षाओं की जी-तोड़ तैयारी करते हैं। हालांकि पर्चाफोड़ और नकल कराने वालों के खिलाफ राज्य सरकारों ने सख्त कानून बनाए हैं, लेकिन इन सबके बावजूद इस प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। सवाल है कि आरोपियों के पकड़े जाने के बाद भी वे आसानी से कैसे छूट जाते हैं, जबकि कानून में तो सजा का कड़ा प्रावधान है। कड़ी सजा के प्रावधान भर से इस समस्या का कोई असरदार हल नहीं निकलने वाला है। हर साल सिविल सेवा परीक्षा में दस लाख से अधिक अभ्यर्थी होते हैं, फिर भी यूपीएससी सुरक्षित परीक्षा आयोजित करता है। जहां तक आनलाइन पर्चे की बात है, प्रौद्योगिकी आधारित परीक्षा / आनलाइन परीक्षाओं के निरंतर उपयोग से इसमें रिसाव का खतरा रहेगा खतरा बढ़ना तय है, अब एआइ का समय है, ऐसे में यह भविष्य में बड़ा खतरा होगा। अगर गृह मंत्रालय की वेबसाइट में सेंधमारी हो सकती है, तो ये परीक्षाएं कैसे सुरक्षित मानी जा सकती हैं?”
अब अकेली, व्यक्तिगत या छोटे समूह स्तर के घोटाले नहीं रह रह गए हैं। जैसे-जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर तेजी से बढ़ा
है, अनियमितता की प्रकृति भी भी बहुत बड़ी हो गई पर पूरी राजनीतिक संपर्क वाली नियुक्तियों पर है। भर्ती आयोग तरह रोक लगाई जाए। कई केंद्राध्यक्ष सहित सभी के लिए मोबाइल फोन प्रतिबंधित होने चाहिए। पर्चा तैयार करने से लेकर परीक्षा केंद्र पर वितरण तक सैकड़ों लोग शामिल होते हैं, इसलिए ऊपर से नीचे तक सभी की जिम्मेदारी तय हो। अधिकतर परीक्षा केंद्र निजी संस्थानों में होते हैं, उनमें मानक के अनुरूप नहीं हैं। सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 में भी कई खामियां हैं, जिसमें तत्काल की आवश्यकता है। सार्वजनिक परीक्षा के पर्चाफोड़ का अपराध बड़े पैमाने पर जनता को प्रभावित करता है, इससे राज्य के खजाने पर भी भारी वित्तीय बोझ है। पड़ता सुधार अधिनियम में कारावास की न्यूनतम अवधि तीन साल है, जिसे दस साल करना चाहिए। वहीं, निर्धारित सजा की राशि अपराध की गंभीरता के अनुरूप नहीं है। इसमें समयबद्ध जांच का कोई प्रावधान नहीं है। अधिनियम के तहत किसी अपराध के लिए जुर्माना अदा न करने की स्थिति में कारावास की अतिरिक्त सजा के साथ-साथ अपराधी की संपत्ति जब्त करने का प्रावधान भी शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा, अनुचित साधनों का लाभ उठाने में शामिल उम्मीदवार को भविष्य की किसी भी परीक्षा के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।
सरकारी विभागों में नौकरी पाने के लिए छात्र कमरतोड़ मेहनत करते हैं। मगर ईमानदारी से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों का हौसला अब हार रहा है। आज उनके अंदर निराशा है और इससे उनके परिवार का मनोबल भी टूट रहा है। परीक्षा एजेंसी का अपना प्रिंटिंग प्रेस हो हो या एक घंटे पहले साफ्ट कापी को ‘कोड लाक’ के माध्यम से सीधे भेजा जाए और परीक्षा केंद्र में मौजूद अभ्यर्थियों को वहीं प्रिंट करके वितरित किया जाए। इस विधि से प्रश्नपत्र प्रेस छपाई से थोड़े महंगे जरूर होंगे, पर सुरक्षित होंगे। पूरी प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए पर्चा बनाने से लेकर परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए। किसी कोचिंग संस्थान की संलिप्तता मिलने पर उसको भी बंद किया जाए। पर्चा तैयार होने से लेकर उन्हें परीक्षा केंद्रों पर पहुंचाने में शामिल सभी लोगों की जिम्मेदारी तय हो।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट