क्यों कम हो रही है
IMMUNITY
आज के खान – पान , रहन – सहन आदि से लोगों की हर तरीके से प्रतिरोधक क्षमता पहले से बहुत कम हो गयी है । इसके लिये सिर्फ समय को दोष देने से कुछ नहीं होगा क्योंकि समय तो पहले , वर्तमान में अपने हिसाब से निर्बाध गति से चल रहा है । समस्या हमने स्वयं ने अपने स्वार्थ आदि से उत्पन्न की है तो उसका समाधान भी हमको स्वयं को करना होगा । शुद्ध, सात्विक आहार से हमारा सुस्वाथ्य व सुंदर विचारधारा का मूल बना रहता है । जिसे ओज कहते हैं । स्वास्थ्यप्रद समुचित भोज ओज के लिये चाहिए । इसमें अदृश्य बात और है की न्याय व नीति से अर्जित अन्न व प्रेम से पकाया हुआ भोजन का बहुत महत्व होता है ।जो हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखता है । इसीलिए कहा जाता है की जैसा खाए अन्न वैसा ही बनेगा हमारा मन । जीवन का मुख्य आधार खान-पान है । शुद्ध, सात्विक, सीमित स्वास्थ्यप्रद खान-पान आदि सुस्वाथ्य के लिए हितकारी होते है । क्या आप अपने आस पास की दुनिया से परिचित हैं ? यदि हां तो कहाँ किस हद तक ? जहाँ तक अपना स्वार्थ सिद्ध हो सके वहीँ तक न ? दूसरी तरफ क्या हम स्वयं अपने आप से परिचित हैं ? यदि हां तो कहाँ तक अपने पहनावे से ,रहन सहन से और अपने शरीर आदि से ही तो ? सही में आप न दुनिया से परिचित हैं और न ही अपने आप से । आप जी रहे हैं स्वार्थ, दिखावा,क्रोध, मान , माया, लोभ , राग और द्वेष आदि की दुनिया में । यह जीना भी कोई जीना है ।यदि दुनिया में हम जीते तो समक्ष आये व्यक्ति के सुख दुःख में होते साझीदार। बांटते उनको अपना निःस्वार्थ प्यार ।यदि हम अपने आपमें जीते तो स्वयं के भीतर उतर कर उपरत हो जाते हमारे सब व्यवहार। हो जाते आत्म – दर्शन और पा लेते अपना ही साक्षात्कार । अतः ये जीना नहीं जीना है । आधा जीना आधा मरना न जीना हुआ न मरना हुआ । हम बनायें अपना जीवन का सही से कुछ लक्ष्य ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )