युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का 62 वां जन्मोत्सव –
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का 62 वां जन्मोत्सव –
महाज्योयी की साधना में जीवन समर्पित करने वाले , अध्यात्म का तेज जिनका प्रतिपल महान हो रहा ऐसे महान गणनायक , संत शिरोमणी , अप्रमत महासाधक ,अहर्निष करुणा की श्रोतस्वीनी बहाने वाले ,सदगुण रत्नाकर , विधा विशारद , अर्हत वांगमय के उदगाता , अर्हता के आलोक पुँज , श्रम का सागर बहाने वाले , करुणा कुबेर , हमारे भीतर संवेग व निर्वेग पैदा करने वाले, पवित्रता के महासाधक , युगे महापुरुष , वितराग तुल्य , भगवान महावीर के पथ गामी , शान्ति की रश्मियाँ बिखरने वाले , शांतिदूत , श्रम से निष्णात , आत्मा के तारणहार , जन – जन में आशा की नयी किरण पैदा करने वाले, तेरापंथ के गणमाली , महानता के आसन पर आसीन , विनय शिरोमणी , भव्य आत्माओ के भीतर संयम का दीप जलाने वाले , अध्यात्म तत्व वेता , समत्व योग के मूर्तिमान आदर्श , नव – नव इतिहास कर्ता , शक्ति सम्पन्न महापुरूष , महातपस्वी , युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी के चरणो में मेरा भावों से शत्-शत् वन्दन ! आज के इस अवसर पर मेरे भाव –
भैक्षव शासन है सबसे विशाल , हमको उस पर नाज है ।
प्राणों से प्यारे गुरुवर हमारे , हमको महाश्रमण जी पर नाज है ।।
चमके गुरूवर सूरज के जैसे , झिलमिल सितारों में जैसे चाँद है ।
हिमालय बनकर पहरा देते , उफनती झीलों के यह बाँध है ।
अपनी सौम्य घटाओ में , समता का पाठ पढ़ाते है ।
मर्यादा पालन यहाँ प्रथम , संघ के हमारे प्राण है ।
प्राणों से प्यारे गुरुवर हमारे , हमको महाश्रमण जी पर नाज है ।।
भैक्षव गण को गुरूवर सिंचन देते , संयम सबका फले – फूले ।
गुरूवर के इंगित मात्र से मंजिल मलेगी , धर्म पथ पर चलते चले।
स्वयं को तपा – खपाकर , गुरू से अमृत लेने का स्थान यही है ।
विनती बन सेवा करे , आगे बढ़ने का राज गुरू है ।
प्राणों से प्यारे गुरुवर हमारे , हमको महाश्रमण जी पर नाज है ।।
सागर सी गहराई गुरूवर की , कलयुग में सतयुग जैसे है ।
धरती पर भैक्षव शासन , स्वर्गिक सूखों का गुरू संगम है ।
गुरू गण की रोशनी की भव्यता , नव्यता का नजारा निराला है ।
आँखों के तारे यही , वीणा के हर साज है ।
प्राणों से प्यारे गुरुवर हमारे , हमको महाश्रमण जी पर नाज है ।।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )