वर्षावनों के नष्ट होने से संकट में मानव अस्तित्व
वैश्विक जलवायु संतुलन बनाए रखने में सर्वाधिक निर्णायक भूमिका वर्षा वनों की मानी जाती है। लिहाजा इन्हें संरक्षित किए जाने के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 22 जून को ‘विश्व वर्षावन दिवस’ का आयोजन किया जाता है। कल इसका आयोजन किया गया। यह एक ऐसा वैश्विक अवसर है, जो हमें वर्षावनों की महत्ता, उनकी दुर्दशा और उनके संरक्षण की आवश्यकता को समझने के लिए प्रेरित करता है । वर्षावनों को पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है, क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल से विशाल मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड अवशोषित कर आक्सीजन का सृजन करते हैं।
ब्राजील में अमेजन का दो-तिहाई हिस्सा स्थित है, वहां वर्ष 2001 से 2023 के बीच 6.89 करोड़ हेक्टेयर वृक्ष आवरण नष्ट हो चुका है, जो विश्व की कुल वन कटाई का 43 प्रतिशत है। यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि बीते वर्ष अमेजन क्षेत्र में हर मिनट औसतन 10 फुटबाल मैदान के बराबर वन क्षेत्र समाप्त हुआ, जो अब तक का सबसे गंभीर रिकार्ड है। अफ्रीका, दक्षिण एशिया, इंडोनेशिया, कांगो बेसिन, मध्य अमेरिका और मलेशिया जैसे क्षेत्रों के वर्षावन भी व्यापक विनाश की स्थिति में पहुंच चुके हैं । कृषि विस्तार, अवैध खनन, वनों की अवैध कटाई, शहरीकरण, बांध निर्माण, सड़क परियोजनाएं और जलवायु परिवर्तन जैसी गतिविधियां वर्षावनों को निगल रही हैं। उल्लेखनीय है कि विश्व में लगभग 3.3 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वर्षावनों पर निर्भर करते हैं, जिनमें 80 से 90 प्रतिशत लोग छोटे और मध्यम स्तर के उद्यम संचालक होते हैं। वर्षावन आधारित परागण तंत्र दुनिया की लगभग 75 प्रतिशत प्रमुख फसलों के लिए आवश्यक है। यही कारण है कि वर्षावनों को भोजन सुरक्षा की पहली पंक्ति माना जाता है। वर्षावनों का विनाश तीन बड़े संकटों- जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण और मानव स्वास्थ्य संकट को जन्म देता है। वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हो चुका है कि वर्षावन 90 से 140 अरब टन कार्बन डाईआक्साइड संग्रहित करते हैं। लिहाजा इन वनों का संरक्षण जरूरी है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
