मरे सभी अहसास॥
सब विषयों में काम जो, आती हैं हर हाल।
अक्सर वह रफ़ कापियाँ, रखता कौन सँभाल॥
बनकर रहिए नमक-सा, इतना तो हर हाल।
सोच समझ तुमको करें, दुनिया इस्तेमाल॥
गिरगिट निज अस्तित्व को, लेकर रहा उदास।
रंग बदलने का तभी, करता है अभ्यास॥
अच्छा खासा आदमी, कागज़ पर विकलांग।
धर्म कर्म ईमान का, ये कैसा है स्वांग॥
हुई लापता नेकियाँ, चला धर्म वनवास।
कहे भले को क्यों भला, मरे सभी अहसास॥
खामोशी है काम की, समझ इसे हथियार।
करता नहीं दहाड़कर, सौरभ शेर शिकार॥
समझाइश कब मानते, बिगड़े होश हवास।
बचकानी सब गलतियाँ, भुगत रहा इतिहास॥
-डॉ. सत्यवान सौरभ