अंशुमान त्रिपाठी :बिहार में फिर बहार है, नीतीश कुमार हैं. एक तरफ हर्षोल्लास है तो दूसरी तरफ कातर प्रलाप है. कहीं बिरहा की तान सुनाई पड़ रही है तो कहीं सोहर गूंज रहा है. किसी का आशियाना सजा है तो किसी का नशेमन उजड़ा है. सचमुच कैसा इंसाफ है ये. सुख,दुख, लाभ-हानि. सुख-दुख समेकृत्वा लाभालाभौ जयाजयो. तो सदाकत आश्रम में भजन चल रहे हैं. क्या लेकर आया बंदे, क्या ले कर जाएगा.
सुशील मोदी कह रहे हैं- हम उसे बहुत याद आएंगे, जब उसे कोई ठुकराएगा. रविशंकर प्रसाद तो बिलख-बिलख पड़े कहते हैं- तुम किसी के भी हो नहीं सकते, तुमको अपना बनाकर देख लिया. कहीं चूड़ियां फोड़ी जा रही हैं, तो कही मांग से सियासी सिंदूर पोछा जा रहा है. कहीं प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल नैतिकता सिखा रहे हैं तो नित्यानंदजी इस जगत की अनित्यता का पाठ पढ़ा रहे हैं. टीवी चैनलों में कहीं दर्द का दरिया बह रहा है तो कहीं लावा बनकर फूट रहा है. पूछा जा रहा है कि जो हममें-तुममे करार था, तुम्हें याद हो या न याद हो. कहीं गुलजार स्टाइल में सामान मंगाया जा रहा है. सावन के कुछ भीगे- भीगे दिन रखे हैं और मेरे एक खत में लिपटी रात पड़ी है, वो रात बुझा दो. मुस्की मार कर जवाब में नीतीश बता रहे हैं- सावन के वो दिन तो अटलजी के जमाने के हैं. वो रात बुझा दी और वो सामान आप मांग रहे हैं, वो एनडीए आप नहीं हैं. अटलजी को यादकर भावुक हो जाते हैं नीतीश कुमार.
सावन का महीना बिहार बीजेपी को रह रहकर याद आ रहा है. पांच बरस पहले सावन में, नीतीश कुमार लौटे थे एनडीए में, फिर से महफिलें गुलजार हो गईं थी. तो इस सावन मे अपने पुराने प्यार को झूले में बिठा कर पींगे ले रहे हैं. बैकग्राउंड में चल रहा कजरी गीत बिरह की पीर बढ़ा रहा है- घर आजा घिर आए बदरा सांवरिया..मेरा जिया धक-धक चमके बिजुरिया. इस विधवा विलाप से बेअसर नीतीश की मुस्कुराहट कम होने का नाम नहीं ले रही. पूछ रही हैं कि न था रकीब तो आखिर वो नाम किसका था, तुम्हारे खत में इक नया सलाम किसका था..दरसल दोनों समझ रहे हैं इस मोहब्बत की असलियत. रातोंरात आरसीपी सिंह की बदलती रंगत देख नीतीश ने भांप लिया…नए आशिक की तरह राम चंद्र प्रसादजी से नया प्रेम छिपाया भी ना गया.. समर्थकों से कहने लगे कि सात जन्मों तक पीएम नहीं बन सकते नीतीश कुमार, आप लोग रहिए तैयार, एकजुट रहिए, चला जाएगा…नीतीश समझ गए कि एक बगलबच्चा एकनाथ शिंदे की राह पर है. बगावत के लिए जेडीयू के विधायकों को छोह करोड़ का लालच दे रहा है.. और बीजेपी भोली बन कर बैठी है. सच्ची सुहागन की तरह ऐंठी हैं. भांप गए बीजेपी का त्रिया-चरित्तर नीतीश कुमार..
बीजेपी को भी लगता रहा कि नीतीश कुमार जब तक समझें तब तक पूरे सूबे में पैर जमा लिए जाएं, अगले विधानसभा चुनाव के लिए दो सौ विधानसभा सीटों पर प्रवास कार्यक्रम बना लिया गया था. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी पटना में हुंकारी भर जता दिया कि आने वाले वक्त में क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी और बीजेपी एकछत्र राज करेगी. नीतीश को और क्या चाहिए, बीजेपी की बेवफाई का सुबूत मिल गया. आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले कह भी दिया कि वक्त आने पर खुलासा किया जाएगा कि बेवफा कौन और किसने कैसे की बेवफाई.
नीतीशजी कुछ भी कहें लेकिन उन्हें पलटूराम यूं ही नहीं कहा जाता. आठ साल पहले बीजेपी से अलग हुए थे तो तब विधानसभा में कहा करते थे कि मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे, वहीं जब आरजेडी से अलग हुए थे तब भी कहा था कि रहे या मिट्टी में मिल जाएं लेकिन लौटने का सवाल नहीं उठता है.
दरसल लालू के साथ बेवफाई का इल्जाम हमेशा नीतीश के सिर रहा. कहा तो यहां तक जाता रहा कि नीतीश अगर अड़ जाते तो बीजेपी लालू को जेल नहीं पहुंचा सकती थी. ऐसे में नतीश ने बीजेपी से बेवफाई कर सामाजिक न्याय की लड़ाई के इतिहास का कलंक धो लिया. और अब राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और वीपी मंडल की कतार में अपना नाम शुमार करवाने की तैयारी में हैं. इसके लिए 2024 में मंडल बनाम कमंडल की रणनीति पर अमल शुरू भी कर दिया है. जाति जनगणना कर बीजेपी से पिछड़ों को अलग-थलग करने की योजना बनाई गई है.
नीतीश कुमार वक्त के इंतजार में थे. जो सियासी तौर पर मुफीद और मुनाफा दे सके. और मुख्यमंत्री की गद्दी पर बीसियों साल गुजारने के बाद नीतीश कुमार सत्ता से अघा चुके हैं. अब पॉलटिक्स का नेशनल गेम खेलने की तैयारी में हैं. पिछली बार लालूजी ने उन्हें गुरु वशिष्ठ बना कर अपनी संतानें सौंपी थी कि इन्हें राजनीति सिखाईए और सत्ता में बिठाईए, लेकिन आजकल की पीढ़ी उस्ताद से ही उस्तादी करने पर आमादा थी, सो नीतीश ने बीजेपी का पल्लू थाम कर झटका दे दिया. लेकिन पिछले एक साल से राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के पराभव ने उनकी अंतिम सियासी इच्छा जगा दी. ममता बनर्जी भी पार्था चटर्जी का हश्र देख अभिषेक बनर्जी को बचाने के लिए बहनजी की तरह नरेंद्र दा की शरणागत हो गईं. कांग्रेस नेशनल हेराल्ड की प्रॉपर्टी में उलझ गई. ईडी नीतीश के घर का पता पूछते-पूछते रह गई. ऐसे में नीतीश कुमार को दिल्ली दरबार नज़र आने लगा. पीएम पद की दावेदारी से इंकार भी करते रहे तो पीएम मोदी को 2024 की चुनौती भी दे डाली. कहां- जो 2014 में आए हैं वो 2024 में नहीं रहेंगे. बहरहाल अब ये सियासी मोहब्बत अदावत में बदल चुकी है. अब दोनों के हाथ में खंजर है, बदलते वक्त का यही मंजर है.
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