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कुप्रबंधन से बिगड़ती स्थितियां

कुप्रबंधन से बिगड़ती स्थितियां
विजय गर्ग

फिर शहरों में बरसाती पानी की बेहतर निकासी न होने से “अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। दिल्ली में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है। सरकार हर वर्ष जल निकासी के बेहतर उपाय करने का भरोसा दिलाती है, मगर वह जमीन पर उतरता नहीं दिखता। इस वर्ष फिर दिल्ली सरकार ने जलभराव और बाढ़ जैसे हालात से होने वाले नुकसान से निपटने के लिए दीर्घकालीन योजनाएं बनाई हैं। इनमें जल निकासी व्यवस्था की निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी को बढ़ाना, अधिकारियों के आपसी ‘टकराव को दूर करना, जलभराव के लिए स्थायी समाधान खोजना, अतिक्रमण हटाना और निर्माण, तोड़फोड़ और डेयरी कचरे का प्रभावी प्रबंधन करना शामिल है। इन कोशिशों से यह उम्मीद बनी है कि मौजूदा बुनियादी ढांचे सुधार और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय करके जलभराव का क को रोक पाना संभव हो पाएगा।
इस वर्ष दिल्ली में जल निकासी के लिए सोलह सौ करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया। बावजूद इसके, दिल्ली में कम से कम पचास पाइसक जगहों पर विकट जलभराव जैसे हालात बन गए। दरअसल, दिल्ली में कुप्रबंधन महज बारिश के पानी को लेकर नहीं है सड़कों पर अतिक्रमण, बेतरतीब ढंग इधर-उधर कूड़ा-कचरा फेंकना और मनमाने ढंग से कहीं भी झुग्गी बना कर रहने लग जाना जैसे दिल्ली की पहचान बन गई है। जनवरी में हुए स्वच्छता सर्वेक्षण में 1446 शहरों में दिल्ली को नब्बेवां स्थान मिलना भी इस बात की तस्दीक तस्दीक करता है कि दिल्ली में कई स्तरों पर कुप्रबंधन है, जिसका मुकम्मल समाधान निकालना जरूरी है।
बरसात दिल्ली जैसे महानगर के लिए आफत बन जाए तो इसे किसकी नाकामी माना जाएगा? घरों, दफ्तरों और राजकीय भवनों में पानी घुसना दिल्ली जैसे शहर की सेहत के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता। अब जब भारत को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने की बात कही रही हो, तो कुप्रबंधन से उपजी समस्याएं विश्व मीडिया का ध्यान खींचती ही हैं। सवाल राजधानी में जलजमाव की समस्या हल होगी ? कि आखिर कब तक दरअसल, दिल्ली की अनियोजित बसावट कारण यातायात और जाम की समस्या, सड़कों घंटों पानी भरे रहना, निचली जगहों और पुलों नीचे पानी भर जाने जैसी समस्याएं अधिक हैं। गर्मी से राहत के लिए लोग बरसात का इंतजार करते हैं और बरसात होने जब पानी घर के अंदर घुसने लगता और राहत आफत तब्दील हो जाती है, तो दिल्ली के विकास पर सवालिया निशान लगता ही है। दिल्ली को यातायात, जल निकासी, नाले और नालियों की सफाई और कचरा प्रबंधन की समस्या का हल न निकाल पाने की वजह तलाशने की चाहे जितनी कोशिश की जाए, वह परवान नहीं चढ़ सकती है, जब तक इन विभागों से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों में समस्या की गहराई और उससे जुड़ी संवेदना नहीं जागती।
भारत के तमाम महानगरों में यातायात, वर्षा जल निकासी और कचरा निपटान की समस्या एक जैसी है। डब्लूआरआइ इंडिया की एक शोध परियोजना के शुरुआती निष्कर्षो से मालूम होता है कि भारत के दस सबसे ज्यादा आबादी वाले शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद, जयपुर, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत और बंगलुरु) में 2000-2015 (शहर के केंद्र के दस किमी के भीतर) के बीच हुए नए नगरीय विकास कार्यों के तहत बनी 35 फीसद इमारतों का निर्माण ( 428 वर्ग किमी) भूजल पुनर्भरण की अधिक या अत्यधिक संभावना वाले निचले इलाकों में हुआ है। ये सभी शहर कई वर्षों से बाढ़ या डूब जैसी समस्या से जूझते नजर आते हैं।
इस साल गर्मी ने पिछले सारे रेकार्ड तोड़ दिए। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी वजह जलवायु परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बरसात और गर्मी के मिजाज में बदलाव हुआ है। पिछले कई वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि एक महीने या पूरे ऋतु में जितनी औसत बरसात होनी थी वह एक या कुछ दिनों में ही हो गई। जैसे दिल्ली में 28 जून की एक हा जन को एक ही दिन में में 228.1 मिलीमीटर बारिश हुई। इससे पहले 1235.5 मिलीमीटर बारिश हुई थी। जाहिर है, 88 साल 24 जून, 1936 को पहले दिल्ली का रूप आज जैसा नही था। न इतने लोग थे लोग थे और न इतनी कालोनियां थीं। सरकारी आंकड़े के मुताबिक 128 जून का को हुई बारिश में दिल्ली में पचास जगहों पर पर विकट जलभराव के हालात देखे गए। जलभराव से निपटने के लिए दिन भर संबंधित विभागों की टीमें लगी तक भी यातायात सामान्य नहीं हो पाया। पिछले साल आज रहीं. लेकिन शाम तक दिल्ली में में आई बाढ़ की याद ताजा हो आई, जब लोगों के घरों में पानी घुस गया था और उन्हें बाहर तंबुओं में शरण लेनी पड़ी थी। बरसात में जलभराव से उपजी समस्याएं और ठंड तथा गर्मी में बेघरों की बड़ी तादाद में मौत होना दिल्ली के समुचित विकास की कमी को ही नहीं बयान करता, बल्कि मानवीय स्तर पर समाज में कम होती सामाजिकता और संवेदना की कमी को भी दर्शाता है। आजादी के बाद से राजधानी के रूप में दिल्ली अनेक समस्याओं से जूझती रही है। जल माफिया की मनमानी, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों और बहुत बड़े पैमाने पर झुग्गियों के रातोंरात खड़े हो जाने जैसी घटनाएं दिल्ली को दुनिया की बेहतरीन राजधानी और शहर के रूप में | पहचान बनाने से रोकते रहे हैं। हर साल सर्दी और बरसात में मच्छरों के प्रकोप से डेंगू, चिकनगुनिया, मौसमी बुखार, मलेरिया से सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। जलभराव की वजह से इन बीमारियों का फैलाव तेजी से होता है। इसलिए दिल्ली को समस्या मुक्त राजधानी के रूप में विकसित करने की जरूरत है।
जलभराव और अतिक्रमण के अलावा कूड़े-कचरे से पैदा होने वाली समस्याओं से छुटकारा दिलाने का काम महज सरकार से नहीं होगा। आम आदमी को भी अपनी आदतों, लापरवाही और गैर-जिम्मेदराना हरकतों को छोड़ना होगा। कम क्षेत्रफल में ज्यादा आबादी का बोझ ढो रही दिल्ली में हर वर्ष बढ़ते लाखों वाहन भी दिल्ली की मौजूदा सड़कों और यातायात व्यवस्था की मौजूदा हालात को बदतर करने के जिम्मेदार हैं जलभराव से ठप यातायात या जाम के हालात सड़क की क्षमता से बहुत ज्यादा वाहनों की वजह से पैदा होते है। इसलिए व्यक्तिगत वाहनों के इस्तेमाल की जगह सार्वजनिक वाहनों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग | बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जाम की वजह से दिल्ली में पर्यावरण की समस्या खतरनाक स्तर तक पहुंच पहुंच जाती है । इसलिए सड़क यातायात व्यवस्था, जल निकासी और अतिक्रमण की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली वालों को भी आगे आना होगा। फिर, दिल्ली की समस्याओं को दलगत भावना से ऊपर उठ कर देखने की जरूरत है। जब तक यह भावना नहीं आएगी कि दिल्ली हमारी है और इसकी हर समस्या को हल करने में हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है तब तक दिल्ली को दुनिया की सर्वोत्तम राजधानी के रूप में विकसित नहीं किया जा सकता है।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कोर चंद वाली मंडी हरजी राम वाली मलोट पंजाब -152107 जिला मुक्तसर पंजाब

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