झारखंडराजनीति

झारखंड के चुनाव में कोर वोटर्स का बिखराव बना भाजपा की हार का कारण

डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

देश में पिछले दिनों महाराष्ट्र व झारखंड में विधान सभा के चुनाव हुए उसमें महाराष्ट्र में एनडीए को अपार सफलता मिली। वहीं झारखंड में उसे हार का सामना करना पड़ा। हार के नतीजों पर सभी दलों में मंथन चल रहा है कि जनता के विश्वास पर खरे क्यों नहीं उतर पाएं ? इसी का विश्लेषण प्रस्तुत है।

भाजपा ने इस बार महाराष्ट्र व झारखंड के विधानसभा चुनाव एवं उपचुनाव में घुसपैठियों के विरुद्ध लड़ाई को आधार बनाकर चुनाव लड़ा । यदि महाराष्ट्र विधानसभा तथा यूपी उपचुनाव की बात करें तो ‘बंटेंगे तो कटेंगे, ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ के नारे को कमोबेश भारी सफलता मिली परंतु वहीं झारखंड में इसका कुछ भी असर नहीं दिखा। वास्तव में नारे का दाव ही उल्टा पड़ गया। हम देखते हैं कि झारखंड की परिस्थिति, तथाकथित डेमोग्राफी, आदिवासियों का तीर धनुष के प्रति आकर्षण,मइया सम्मान योजना, कल्पना सोरेन का नया अवतार आदि ने भाजपा की गोगो दीदी योजना पर पानी फेर दिया। बची खुची कसर जयराम महतो के बगावती तेवर ने निकाल दी। शायद भाजपा ने जयराम महतो को समझने में भूल की क्योंकि लगभग दो दर्जन विधानसभा क्षेत्र में उनको पड़े वोट में यदि भाजपा, आजसू, जदयू को पड़े वोट को जोड़ दें तो एनडीए को 48 सीटें मिलती दिख रही हैं। वहीं मांडू तथा लातेहार में जीत का अंतर 500 से भी नीचे रहा । यहां भी जयराम महतो ने प्रभावित किया। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि प्रायः भाजपा के कोर वोटर्स पर ही जयराम महतो ने सेंध मारी की। झारखंड की पृष्ठभूमि में जयराम नामक एक नई राजनीतिक धुरी का प्रादुर्भाव हुआ है जिसके इर्द-गिर्द राजनीतिक गतिविधियां भविष्य में चलने का संकेत दे रही है।

जहां तक घुसपैठियों और तथाकथित डेमोग्राफी का प्रश्न है तो इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता । बात सत्य है लेकिन प्रश्न उठता है कि इसका जिम्मेवार यदि झामुमो सरकार को माना जाए तो कहीं न कहीं दोषी भाजपा सरकार भी है कि समय आपके हाथ में भी था तो फिर आपने क्यों नहीं उचित कदम उठाया क्योंकि इसका आगाह तो वर्षों पहले से शुरू हो गया था? बस यहीं खेला हो गया और इंडिया गठबंधन ने उल्टा दोष भाजपा पर ही लगा दिया और इसका असर दिखा भी। गौर करने वाली बात यह है कि चुनाव घोषणा के पूर्व झारखंड में ऐसा माहौल था मानो हेमंत सरकार अब फिर दोबारा नहीं आएगी। चाहे वो अवैध खनन का मामला हो, विभिन्न प्रकार की एजेंसियों की जांच हो, तथाकथित घोटाले से प्राप्त बड़ी धनराशि हो, रोजगार गारंटी की वादाखिलाफी हो, ये सारे मुद्दे चुनाव आते-आते गौण हो गए और फ्री की रेवड़ी ने सबका ध्यान आकर्षित किया।

एक बात तो स्पष्ट हो गई कि विशेषकर आदिवासियों को विकास आदि से कोई लेना-देना नहीं रहता है। उनका झुकाव एकतरफा होता है और उसमें अल्पसंख्यकों का मेल तथा कुछ हद तक भाजपा के कोर वोटर्स का बिखराव भाजपा के हार का कारण बना जबकि चुनाव के पूर्व पृष्ठभूमि बिल्कुल ही भाजपा के पक्ष में तैयार लग रही थी लेकिन हेमंत सोरेन का जेल जाना और फिर कल्पना सोरेन का एक ट्रम्प कार्ड के रूप में उभरना और जेल से निकलने के बाद उसे जनता के सेन्टिमेंट से जोड़ देने में वे सक्षम हो गए और इसका तोड़ भाजपा नहीं निकाल पाई। भले ही झारखंड की जनता थोड़े से क्षणिक लाभ में बहकर भाजपा द्वारा उठाए गए घुसपैठ के मुद्दे पर गोलबंद नहीं हुई लेकिन यदि यह सत्य है तो इसका दूरगामी प्रभाव बड़ा ही वीभत्स हो सकता है जिसे अभी कहना सही नहीं है क्योंकि राज्य सरकार इस बात को सिरे से नकार रही है।

घुसपैठ एक विचित्र मुद्दा है जिसकी भाजपा घोर विरोधी है परन्तु बाक़ी दल इस पर कुछ नहीं बोलते हैं। और तो और ,किसी प्रकार से कोई दस्तावेज भी दिखाने को तैयार नहीं है। हम कहते है कि जब किसी होटल में एक रात ठहरने के लिए किसी को अपना आईडी कार्ड दिखाना पड़ता है तो फिर आप तो देश में सदा के लिए रहने आए हो, स्वाभाविक है आपको आइडेंटिटी कार्ड दिखाना ही चाहिए । और यह किसी भी सरकार का फर्ज बनता है। इस बात पर सभी राजनीतिक दलों को एकजुट रहना ही चाहिए। अगर आपका आईडी कार्ड सही है तो फिर कोई उसे निकाल नहीं सकता

लेकिन यदि चोरी या घुसपैठ से घुसे हो तो फिर यहां रहना वाजिब नहीं है।

भाजपा की हार पर यदि सही से मंथन किया जाए तो इस बात को मानना ही पड़ेगा कि भाजपा का मुख्य फोकस हिन्दू वोटर्स पर था जिनका निश्चित रूप से बिखराव हुआ है। कुछ आपसी मतभेदों ने भी भीतरघात करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अंततः हार का कारण बने जबकि भाजपा ने बिल्कुल सही ढंग से सोच समझकर पृष्ठभूमि तैयार की थी। वहीं, टिकट का बंटवारा भी छिटपुट विवाद को छोड़कर सही ही किया था पर दुर्भाग्यवश मनोनुकूल फल प्राप्त नहीं हुए, इसलिए इस पर मंथन जरूरी है। वैसे सभी दल अपनी हार जीत पर मंथन करते है लेकिन इस पर गम्भीरतापूर्वक मंथन करना पड़ेगा, तो ही जनता के विश्वास को राजनीतिक दल जीत सकेंगे।

डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

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