दीपावली
दीपो ज्योति पर ब्रह्म | दीपो ज्योति जनार्दन | दीपो हरतु मे पापं|
संध्यादीप नमोस्तुते | दीपावली अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व हैं । अज्ञान पर ज्ञान के विजय का पर्व हैं । बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व हैं । दीपावली दीपों का पर्व हैं ।
दीपक की बाती को बनना है ज्योतिर्मय तो तेल में डूबे होना चाहिए । साथ ही तेल से बाहर भी रहना चाहिए । अगर डूब जायेगी तो वह प्रकाशित नहीं रह पायेगी । इसी तरह हमारा
जीवन भी दीपक की बाती के समान हैं । संसार में रहते हुए भी हमको निष्प्रभावित रहना हैं । जिससे आत्मा के संसार भव भ्रमण कम हो । यदि हम इसमें रच – बस कर डूब जाएँगे तो रह जायेंगे भव – भ्रमण करते हुए अप्रकाशित ।अतः सांसारिक कर्तव्य निभाते हुए भी हमे राग द्वेष से लिप्त नहीं होना हैं । दीपावली पर्व पर हमें भगवान शालीभद्र जैसा त्याग , अभयकुमार जैसी बुद्धि , भरत राजा जैसी अनाशक्ति , जगडु शाह जैसी उदारता , कुमार पाल राजा जैसी जीवदया , सुलसा जैसी श्रद्धा , पूनिया श्रावक जैसी समायिक, नीती, व संतोष । विजिया सेठ, विजिया सेठानी जैसा ब्रह्मचर्य , गौतम स्वामी जैसा विनय, जम्बु स्वामी जैसा वैराग्य ,जिरणसेठ जैसा भाव, श्रैयांस कुमार जैसा अच्छा सुपात्रदान ,धना अणगार जैसा तप, मृगावती जैसी क्षमा आदि – आदि हमको प्राप्त हो । आज भगवान महावीर का निर्वाण कल्याणक दिवस भी है । जिससे प्रकाशित हैं पूर्ण आकाश, प्रमुदित सकल समाज , अमावस्या बनी पूर्णिमा । ज्ञानत्त्व के उजास सें , सिद्धत्त्व के प्रकाश सें , ज्योतिर्मय बन गया वातावरण । महावीर स्वामी निर्वाण पहुंचे । गौतम स्वामी को उपजा केवल ज्ञान । आज प्रकाशमय दीपावली पर्व है। आज के दिन लक्ष्मी जी की आराधना की जाती हैं । व्यक्तित्त्व के छह गुण हैं छह ही लक्ष्मी की विशेषता हैं । आरोग्य ,बोधि, निर्मलता , समाधि या पवित्रता ,तेजस्विता और गंभीरता । जिसमें यह छह गुण प्रकट होते हैं वह दुनिया का उत्कृष्ट मानव बन जाता है । उसका जीवन सुख शांतिमय बन जाता हैं । समत्त्व भाव का संजीवन उसको मिल जाता हैं । लक्ष्मी के दो रूप है एक पदार्थोन्मुखी और दूसरा आध्यात्मिक । दोनों ही रूपों की उपासना की जाती हैं । पर समझें हम एक बात की दीवाली को न बनाएं सिर्फ और सिर्फ धन पूजा का पर्व मानें हम उसको विशुद्ध आत्म प्रकाश का पर्व ।बने आध्यात्मिक ‘श्री’* सें संपन्न। धन ऐश्वर्य इससे अपने आप उत्पन्न होंगे । अतः करें शुद्ध ज्ञान की उपासना जिससे स्वतः हो जायेगी लक्ष्मी की आराधना । साहस का दुस्साहस पर , शुभात्व की अमंगल पर , रोशनी की अंधेरे पर, धर्म की कर्म पर विजय आदि का यह दिन है । दीपावली का शुभ पर्व सही में वही मनाएगा जो जानेगा निस्वार्थ भाव से जलना वह अंधकार को दूर भगाना । दीपक की तरह हम भी निर्मल मन -निस्वार्थ सेवा भाव और त्याग की कसौटी पर प्रकाशमान हो। इस वर्ष का प्रकाश पर्व हमारी सार्थकता का प्रमाण हो जो दीये में दिखायी दे -देश की शान और भाई चारा के रूप में ।क्योंकि यह वर्ष का दीया चाहता हैं -विकास की सम्भावनाओं में सही दिशा और दर्शन। दीया जलते हुए हमको प्रेरणा दे रहा हैं की मनुष्य जीवन मुश्किल से कल पर कुछ मत छोड़ना। दीपावली के दिन हम घर की ऊँची मीनारों पर दीये की जगमगाती क़तारें खड़ी करे न करे मगर एक दीया श्रद्धा आस्था समर्पण का भीतर ज़रूर जलाए ताकी प्रकाश पर्व को सार्थक रूप से प्रणाम कर सके। अध्यात्म के दीपक रूपी आगम उत्तराध्ययन-दैसवेकालिक-सम्बोधि व अन्य ग्रंथ व शास्त्र हमारे पथ प्रदर्शक हैं। जो हमें जीवन में सही राह दिखाते हैं । गुरु ने यह दीपक हाथ में थमा दिया हैं हम थामे और संकल्प करे लगन से निष्ठा से दृढ़ संकल्प से हम चलना प्रारम्भ करे। तब होगा हमारा शुभ दीपोत्सव ।इन्ही शुभ भावों से तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव और दीपावली की आपको एवं आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)