कर्नाटक विधान परिषद ने विपक्षी दल कांग्रेस तथा जनता दल (सेक्युलर) के विरोध के बीच विवादित ‘‘धर्मांतरण रोधी विधेयक’’ बृहस्पतिवार को पारित कर दिया। विधानसभा ने पिछले वर्ष दिसंबर में ‘कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल’ पारित किया था। यह विधेयक विधान परिषद में पारित होने से अटक गया था क्योंकि उस वक्त भारतीय जनता पार्टी के पास बहुमत नहीं था। सरकार इस विधेयक को प्रभाव में लाने के लिए इस वर्ष मई में अध्यादेश लायी थी। गृह मंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने ऊपरी सदन में आज विधेयक पेश किया।
उन्होंने कहा कि हाल के वक्त में बड़ी संख्या में धर्मांतरण हो रहा है, प्रलोभन दे कर सामूहिक धर्मांतरण और जबरदस्ती धर्मांतरण कराया जा रहा है जिससे शांति भंग हो रही है और विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों के बीच अविश्वास पैदा हो रहा है। गृह मंत्री ने कहा कि यह विधेयक किसी की धार्मिक आजादी नहीं छीनता और कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार धर्म का अनुसरण कर सकता है लेकिन किसी दबाव अथवा प्रलोभन में नहीं। विधान परिषद में विपक्ष के नेता बी के हरिप्रसाद ने इसका विरोध करते हुए विधेयक की प्रति फाड़ दी।
हरिप्रसाद ने विधेयक को‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया और कहा कि यह धर्म के अधिकार को प्रभावित करेगा। वहीं विधि एवं संसदीय कार्य मंत्री जे सी मधुस्वामी ने कहा कि यह विधेयक भारत के संविधान के दायरे में है। मुख्यमंत्री बोम्मई ने कहा कि सरकार धर्मांतरण का विरोध नहीं कर रही है। उन्होंने विधान परिषद में कहा, ‘‘ हम जबरन धर्मांतरण को रोकने की कोशिश कर रहे हैं और उस धर्मांतरण को रोकने की कोशिश कर रहे हैं जो कुछ समुदाय के लोगों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए किया जाता है।’’ गौरतलब है कि कुछ इसाई संगठनों के प्रमुखों ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था।
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