
President Election 2022: भारतीय जनता पार्टी का द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) का राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया जाना ऐतिहासिक है. कहा जाता था कि दलितों के पास भीम राव आंबेडकर थे लेकिन आदिवासी समुदाय के पास कोई राजनैतिक आवाज़ नहीं थी. इसलिए देश के कोने-कोने में फैले होने के बावजूद उनका राजनैतिक प्रतिनिधित्व प्रखर नहीं रहा. भारत को दो दलित राष्ट्रपति भी मिले जिनमें के आर नारायणन और कोविंद जी शामिल हैं लेकिन आदिवासी समुदाय से ना प्रधानमंत्री मिला और ना ही राष्ट्रपति. आज तक ना कोई वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री आदिवासी समुदाय से आया.
हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं यशवंत सिन्हा
कोई भी आदिवासी केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका में लंबे समय तक नहीं रहा है लेकिन द्रौपदी मुर्मू के प्रत्याशी घोषित होने के बाद राजनैतिक समीकरण बदला है. टीएमसी के नेता यशवंत सिन्हा जी आज संपूर्ण विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार है. वो हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं. उनकी उम्मीदवारी से ना विपक्ष एक जुट होगा और ना ही देश में सही संकेत जाएगा. कलाम साहब के वक़्त जो हुआ वो ही सभी पार्टियों को कोशिश करनी चाहिए. मुर्मू जी का समर्थन होना चाहिए और लेफ्ट की तरह गलती नहीं की जानी चाहिए जिन्होंने केवल विरोध के नाम पर उम्मीदवार उतार दिया था.
आज लेफ्ट भारतीय राजनीति में मायने नहीं रखती
आज लेफ्ट भारतीय राजनीति में मायने नहीं रखती है. उसे कोई पूछता नहीं है. यशवंत सिन्हा जी भी पिछड़े लोगों की राजनीति करते है. उनको मुर्मू जी की उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए. इससे देश में सही संकेत जाएगा और आदिवासी समाज को भी लगेगा कि उनके साथ न्याय हुआ है. आज़ादी के बाद सबसे ज़्यादा तकलीफ का सामना आदिवासी समाज ने किया क्योंकि विकास के लिए उनके जंगल काटे गए. विकास के नाम पर उन की ज़मीनों का अधिग्रहण हुआ लेकिन फिर भी उस समाज का बड़ा हिस्सा माओवादियों के साथ शामिल नहीं हुआ. इसको मास्टरस्ट्रोक नहीं कहना चाहिए. इसको न्याय और प्रतिनिधित्व की प्रक्रिया का पहला चरण माना जाना चाहिए.
आज ना दलित कांग्रेस को वोट कर रहा है और ना ही आदिवासी
सभी दलों को बड़ा दिल रखना चाहिए जो सोशल जस्टिस और दलित और पिछड़ों की राजनीति करते हैं. जो लोग मुर्मू जी को संघ और बीजेपी का स्टूज कह रहे हैं वो मूर्ख हैं. दलित को राष्ट्रपति बनाने के बाद बीजेपी अब आदिवासी को राष्ट्रपति बना रही है. ये कभी कांग्रेस की आधारशिला होती थी. आज ना दलित कांग्रेस को वोट कर रहा है और ना ही आदिवासी. लेकिन कई बार राजनैतिक दलों को फैसले दूरगामी परिणामों को लेकर करने चाहिए. क्या विपक्ष इस अहसास को लेकर जी पायेगा कि उसने पहले आदिवासी राष्ट्रपति उम्मीदवार की मुखालिफत की थी ? ये काम से काम कांग्रेस को तो सोचना चाहिए ?
द्रौपदी मुर्मू को कोई राष्ट्रपति बनने से कोई रोक नहीं सकता है
अब सारा का सारा मामला यशवंत सिन्हा जी के विवेक पर है क्योंकि कई दल ये कहेंगे कि उनकी लड़ाई मुर्मू से नहीं बल्कि संघ से है. लेकिन संघ आज दलित और आदिवासियों के ज़्यादा करीब खड़ा है. मुर्मू जी को कोई राष्ट्रपति बनने से कोई रोक नहीं सकता है. बीजेपी के पास नंबर हैं लेकिन अगर वो राष्ट्रपति भवन बिना चुनाव के जाएं तो कितना अच्छा रहेगा. जिन लोगों ने देश के विकास के लिया अपना जंगल और घर खोया है अगर उनमें से निकला कोई व्यक्ति बिना विवाद के राष्ट्रपति बने तो देश में भी सही सन्देश जाएगा. मुर्मू जी को बिना लड़े राष्ट्रपति भवन भेजने की चेष्टा होनी चाहिए.
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