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पोषण पखवाड़े में मोटे अनाज का प्रोत्साहन एवम जागरूकता

पोषण पखवाड़े में मोटे अनाज का प्रोत्साहन एवम जागरूकता

*खरपतवार रूपी मोटे अनाज पर लहराती खाद्य सुरक्षा*
*खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा के मोटे अनाज है बेहतर विकल्प*
इटावा:कभी गरीब का अनाज माने जाने वाले मोटे आनाज के प्रति आज पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं, कारण इनके औषधीय गुण एवं विटामिन, मिनरल, फाइवर और पोषक तत्वों का प्रचुर मात्रा में पाया जाना।
आयुर्वेद विभाग इटावा में कार्यरत डॉ कमल कुमार कुशवाहा बताते है कि मोटे आनाजों का ” ग्लाइसिमिक इन्डेक्स ” (कोई भोजन हमारे ब्लड शुगर लेविल को कितनी तेजी से बढ़ाता है ) बहुत कम होने के कारण वर्तमान समय में होने वाले लाइफ स्टाइल डिसार्डर जैसे कि- डाइबिटीज, हृदय रोग, थायराइड, मोटापा, ब्रेन स्ट्रोक, पाली सिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम जो कि युवा लड़कियों में बहुत तेजी से फैल रही है, जिसमें अंडाशय में गांठे पड़ जाती है एवं बॉझपन उत्पन्न होता है। ऐसी बीमारियों से बचाव के लिये मोटे आनाजों को अपने आहार में सम्मिलित करके न सिर्फ इन बीमारियों से बचा जा सकता है, अपितु ये अनाज आयरन, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल, सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ – साथ उच्च फाइबर युक्त होने के कारण ऑतों की सफाई कर कब्ज नहीं होने देते और कोलेस्ट्रोल कम करने में भी सहायक है। अधिकांश मोटे अनाज आर्गेनिक होते हैं, अर्थात् बिना रासायनिक खाद एवं खतरनाक कीटाणुनाशक एवं खरपतवार नाशक रसायनों के बिना उत्पन्न होने के कारण लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। इनकी खेती में बहुत कम संसाधन लगते हैं, लिहाजा इनकी खेती पर्यावरण अनुकूल है। आज दुनिया में मोटे आनाज को “सुपर फूड” या श्री अन्न के नाम से जाना जा रहा है। जिस अनाज को कभी गरीबों का नाज कह कर तिरस्कृत किया जाता था, आज वही अनाज बड़े-बड़े मॉल में बहुत ऊँचे दामों पर बिक रहा है। मिलेट्स अर्थात् मोटे आनाजों के अंतर्गत सॉवा, कोदो, रागी, बाजरा, ज्वार, मक्का, कंगनी, कुटकी आदि को सम्मिलित किया जाता है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में इन्हें शूक एवं शमी धान्य कहा गया है और इन्हें स्वास्थ्य के लिये बहुत गुणकारी बताया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंन्द्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में खाद्य संकट दूर करने की दिशा में मोटे आनाज की खेती को प्रोत्साहन देने की वकालत की। वर्ष 2023 को “यूएन इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स” के तौर पर मनाया जा रहा है। आयुष मंत्रालय, भारत सरकार एवं आयुष विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की पहल पर दिनांक 20 मार्च से 3 अप्रैल तक पोषण पखवाड़े के रूप में मनाया जा रहा है जिसमे विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा “आयुर्वेद आहार/मोटा अनाज” के रूप में मनाकर आम जनता क्रमश किशोर एवम किशोरियों, आंगनबाड़ी केंद्रों, मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को मोटे आनाज के प्रति जागरूक कर आयुर्वेदिक आहार अपनाने को प्रेरित करने का जन अभियान चलाया जा रहा है। एशिया में उगाये जा रहे मोटे आनाज में 80 प्रतिशत भागीदारी भारत की है अर्थात् मोटे आनाज को वैश्विक समर्थन प्राप्त होने से भारत को विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि होने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा। आज के दौर में पैकेट बंद आटा बेचने वाली अधिकांश कंपनियाँ ऊंचे दाम पर बिकने वाले मल्टीग्रेन आटा के नाम पर बहुत ही कम मात्रा में मोटा आनाज मिलाती हैं जबकि उसमें हाई ग्लाइसिमिक इन्डेक्स वाला आटा ही 80 से 98 प्रतिशत तक होता है , जबकि जानकारी के अभाव में या लुभावने प्रचार से प्रेरित होकर उपभोक्ता आर्थिक नुकसान भी सहता है और वांक्षित स्वास्थ्य लाभ भी नहीं मिल पाते हैं। बेहतर है कि स्वयं थोड़ा मेहनत करके घर पर ही मल्टीग्रेन आटा मिलाकर पिसवाया जाये। आटा बनाने के लिये कठिया गेंहू ( ब्राउन व्हीट ) या देशी गेंहूँ 10 किलो में देशी चना 2 किलो, साँवा 250 ग्राम, कोदो 250 ग्राम, रागी 250 ग्राम, कंगनी 250 ग्राम, ज्वार 500 ग्राम, बाजरा 500 ग्राम, मक्का 500 ग्राम, जौ 500 ग्राम मिलाकर पिसवा लें। इस आटे को मोटी छन्नी से छानकर प्रयोग करें ताकि चोकर अलग न हो। यदि रोटी बनाने 1 से 2 घंटे पहले आटा गूंथकर गीला कपड़ा ढककर रख दिया जाये तो रोटी मुलायम बनेगी और सुपाच्य रहेगी।
आधुनिक समय में जब की बच्चों की बिगड़ी हुई आहार परंपरा को हम मोटे अनाज के कॉर्न फ्लेक्स या अन्य दूध में मिलाने वाले पेय पदार्थो के समरूप बना कर अच्छी आदतों की और उन्हें प्रेरित कर सकते है। डॉ कमल कुमार कुशवाहा ने इंटर में पढ़ने वाली 25 किलो वजन की कुपोषित आंचल से जब पूछा कि उसे सबसे अच्छा खाने में क्या पसंद है। तो उसने सिर्फ फास्ट फूड के ही नाम बता पाए। यही स्तिथि आज लगभग सभी घरों के बच्चों की है।किशोर और किशोरियों को इस पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है जिसका बेहतर विकल्प मोटे अनाज से बने खाद्य पदार्थ हो सकते है और हम इस और शीघ्र ही आकर्षित होना होगा।अन्यथा कई बड़ी बीमारियां हमे काल के ग्रास में भेजने को तैयार खड़ी है।
डॉ कमल कुमार कुशवाहा

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