हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। भारत की पंचायती राज व्यवस्था ग्रामीण स्वशासन और विकास की आधारशिला है। यह ग्रामीण भारत को सशक्त करने और लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक पहुंचाने का प्रभावी माध्यम है। 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के तहत लागू पंचायती राज एक्ट ने पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देकर ग्रामीण शासन में क्रांति लाई। इस एक्ट ने महिलाओं के लिए कम से कम 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया, जिसे कई राज्यों ने बाद में 50 प्रतिशत तक बढ़ाया, जिससे लैंगिक समानता और समावेशिता की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठा। यह नारी सशक्तीकरण का मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने ग्रामीण महिलाओं को नेतृत्व की मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त किया। हालांकि यह व्यवस्था संसाधनों की कमी, प्रशासनिक कमजोरियों और पितृसत्तात्मक मानसिकता जैसी चुनौतियों से जूझ रही है।
पंचायती राज मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 14 लाख से अधिक महिला प्रतिनिधि पंचायतों में सक्रिय हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि ग्रामीण भारत में नारी शक्ति अब नेतृत्व में उभर रही है। 2024 के राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कारों में 42 प्रतिशत विजेता पंचायतों का नेतृत्व महिलाओं ने किया, जो इस बात का प्रमाण है कि सही अवसर और समर्थन मिलने पर वे अपने गांवों में बदलाव ला सकती हैं और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना सकती हैं। यह उपलब्धि उन लाखों ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो अभी भी सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं से जूझ रही हैं। यह प्रगति नारी सशक्तिकरण के महत्व को रेखांकित करती है और दिखाती है कि पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी ग्रामीण विकास के लिए कितनी जरूरी है।
पंचायती राज एक्ट के बावजूद, ‘प्रधानपति’ प्रथा नारी सशक्तिकरण को कमजोर कर रही है। इसमें निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पति या पुरुष रिश्तेदार उनकी जगह कार्य करते हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता प्रभावित होती है। यह प्रथा पंचायती राज के मूल उद्देश्य- जमीनी स्तर पर सशक्त नेतृत्व को बढ़ावा देना को कमजोर करती है। सुप्रीम कोर्ट की निदेश पर गठित समिति ने सुझाव दिया कि महिला प्रतिनिधियों के काम में हस्तक्षेप करने वाले पुरुष रिश्तेदारों को दंडित करने का प्रविधान हो। इसके लिए कानून सख्त करने और सामाजिक बाधाएं दूर करने की जरूरत है। समिति ने पंचायती राज मंत्रालय से एक ढांचा तैयार करने को कहा, जिसमें ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी, जागरूकता अभियान और कानूनी कार्रवाई शामिल हो। यह ग्रामीण समाज में जागरूकता बढ़ाएगा। इन उपायों से महिलाओं को अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभाने का अवसर मिलेगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
