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राष्ट्रीयलेख

EXCLUSIVE: आम-आदमी की छोड़ो, झपटमार पहचानने के लिए पुलिस भी स्पेशल ट्रेनिंग लेती है…

admin
Last updated: अगस्त 6, 2022 8:11 अपराह्न
By admin 10 Views
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7 Min Read
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जब भी कहीं किसी जगह पर किसी शख्स के साथ झपटमारी की घटना घटती है, तब-तब पीड़ित को ही दोषी ठहराया जाता है. झपटमारों का शिकार पीड़ित खुद को भी हीन-भावना से देखने लगता है. पीड़ित हो या फिर कोई और. हर किसी को यही लगता है कि गलती-लापरवाही तो सीधे-सीधे पीड़ित (झपटमारों के शिकार बने शख्स) ही बनती है. नहीं ऐसा नहीं है. झपटमार का शिकार होने में या बन जाने में कुछ हद तक पीड़ित की गलती तो होती है. शत-प्रतिशत पीड़ित को ही गलत या लापरवाह ठहरा देना मगर उचित नहीं है. झपटमारों की दुनिया में झांकने पर ही इस तथ्य की गहराई समझ आ सकती है. टीवी9 भारतवर्ष द्वारा पेश की जा रही विशेष सीरीज ‘झपटमार’ में आगे पढ़िए कि आखिर क्या है इस सबके पीछे छिपा सच?

Contents
सतर्कता जरुरी हैतेज नजर की जरूरतपुलिस गच्चा खा जाती हैपुलिसकर्मी भी ट्रेंड हों

सोचिए कि जिन झपटमारों को ताड़ने में पुलिस फेल हो जा रही हो. या जिन झपटमारों को काबू करने के लिए पुलिस को भी ‘स्पेशल ट्रेनिंग’ दी जाती हो. ऐसे में झपटमारी की हर घटना के लिए पीड़ित को ही खड़े-खड़े सबसे पहले जिम्मेदार ठहरा देना उचित कैसे कहा जा सकता है? हमने इस सीरीज को तैयार करने से पहले जितने भी कुख्यात पूर्व झपटमारों से बात की उसमें और भी तमाम सनसनीखेज जानकारियां निकल कर सामने आईं. झपटमारों की ही मुहंजुबानी सुनकर पता चला कि, इस स्ट्रीट क्राइम में दोनों के ही लिए ‘सावधानी’ की बहुत जरूरत है. दोनो से मतलब चाहे वो झपटमार हो या फिर पीड़ित. किसी भी घटना को अंजाम देने के वक्त (शिकार पर झपट्टा मारने के समय) झपटमार सतर्क और सावधान रहता है. वो पहले अपनी सुरक्षा और शिकार बनाने वाले की लापरवाही को ताड़ता है.

सतर्कता जरुरी है

ऐसे में झपटमारों की ही मानें तो,”सड़क चलते या किसी सार्वजनिक जगह पर या भीड़भाड़ वाले बाजार में हम उसी पर हाथ डालते हैं जो, अपनी सुधबुध खोकर अपना कामकाज निपटाने की जल्दी में हो. अगर सामने वाला (संभावित शिकार) जरा भी सतर्क नजर आता है तो हम उसे छोड़कर किसी दूसरे को ताड़ने में लग जाते हैं. सतर्क आदमी तो हमें झपट्टा मारने ही नहीं देगा. अगर हमने कोशिश भी की तो पकड़े जाने का डर बहुत रहता है.” दिल्ली पुलिस स्पेशल स्टाफ, क्राइम ब्रांच और फिर स्पेशल सेल में कई साल तैनात रह चुके डीसीपी एल एन राव कहते हैं, “मतलब साफ है कि जिस तरह से सावधान रहकर झपटमार हमें ताड़ते हैं. उसी तरह अगर भीड़भाड़ वाले या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर हम खुद भी सतर्क रहें तो, झपटमार की हिम्मत ही हाथ डालने की नहीं होगी. झपटमारी से बचने का सबसे आसान तरीका ही ‘सावधानी-सतर्कता’ है.”

तेज नजर की जरूरत

पूर्व डीसीपी एल एन राव कहते हैं कि, “वैसे तो आजकल के झपटमारों को आसानी से ताड़ा-पहचाना जा सकता है. बस नजर तेज रखने की जरूरत है. आपके आगे-पीछे कोई दुपहिया वाहन पर या फिर पैदल हा मंडराए. तो समझ जाइए कि खतरा है. सड़क या सार्वजनिक स्थल पर चलते वक्त मोबाइल का इस्तेमाल कतई न करें. झपटमारों के लिए यह सबसे ज्यादा मुफीद वक्त अपना काम करने के लिए होता है. क्योंकि इंसान मोबाइल पर बातचीत में व्यस्त होता है. इतने में पहले से ही शिकार को ताड़ रहा झपटमार उस पर झपट्टा मारकर भाग जाता है.” अमूमन जब भी कोई झपटमारी की घटना घटती है तो सीधे-सीधे इसके लिए पुलिस, पीड़ित को ही जिम्मेदार ठहराती है. ऐसा क्यों? पूछने पर दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी पूर्व आईपीएस राजन भगत कहते हैं, “पीड़ित की कुछ हद तक गलती हो सकती है. सौ फीसदी मैं पीड़ित को ही दोषी नहीं मानता.”

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पुलिस गच्चा खा जाती है

दिल्ली पुलिस के पूर्व डीसीपी राजन भगत आगे कहते हैं, “सावधानी जरूरी है. मगर जहां तक बात झपटमारों को पहले ही आम आदमी द्वारा पहचान कर उनसे सतर्क हो जाने की है. तो यह काम बेहद मुश्किल है. क्योंकि झपटमारों को पहचानने में अक्सर पुलिस ही गच्चा खा जाती है. तो फिर आम आदमी की भला क्या बिसात? हां यह जरूर है कि आपकी सावधानी-सतर्कता आपको काफी हद तक जेबतराशों-झपटमारों से दूर करके सुरक्षित जरूर कर सकती है. इसमें संदेह नहीं है.” बकौल राजन भगत, “आज की पुलिस का हाल यह है कि उसे भी इन झपटमारों को पहचानने के लिए विशेष ट्रेनिंग लेनी पड़ती है.” राजन भगत की इस बात की पुष्टि होती है हाल ही में रिटायर हुए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के एक आदेश से.

पुलिसकर्मी भी ट्रेंड हों

जिसमें, स्ट्रीट क्राइम रोकने के वास्ते झपटमारों को पहचानने के लिए दिल्ली पुलिस कर्मियों को विशेष ट्रेनिंग देने का जिक्र किया गया है. पूर्व कमिश्नर राकेश अस्थाना द्वारा अपने उस आर्डर में कहा गया है कि, हर जिला पुलिस को सड़क पर मंडराने वाले स्ट्रीट क्रिमिनल्स को पहचानने की विशेष ट्रेनिंग दी जाए. ताकि सड़कों पर मौजूद झपटमार, जेबतराश, लुटेरों को पुलिसकर्मी दूर से ही देखकर पहचान सकें. इस आदेश में तो यहां तक लिखा है कि, दिल्ली की सड़कों पर “जिग-जैग” स्टाइल में अंधाधुंध दुपहिया वाहनों पर दौड़ते पतली कद काठी के लोगों पर विशेष ध्यान रखा जाए. क्योंकि राजधानी में झपटमारी की अब तक जो भी घटनाएं सामने आई हैं, उनमें युवक-युवतियां कम उम्र के ही शामिल रहे हैं. यह सभी तेज गति वाले दुपहिया वाहनों का ही इस्तेमाल करते हैं.

(जारी…..)

कलप्रिट तहलका (राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक) भारत/उप्र सरकार से मान्यता प्राप्त वर्ष 2002 से प्रकाशित। आप सभी के सहयोग से अब वेब माध्यम से आपके सामने उपस्थित है।
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