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धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है मकर संक्रांति का !

धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है मकर संक्रांति का !

14 जनवरी को स्नान और दान का पर्व मकर संक्रांति है। वास्तव में, यह शीत ऋतु की समाप्ति और नई फसल ऋतु के आरंभ का प्रतीक तथा भारतीय संस्कृति का प्रमुख त्योहार है, जो पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह पुण्य अर्जित करने और पापों से मुक्ति का पावन पर्व है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने या गोचर करने को ही संक्रांति कहा जाता है। पूरे साल में सूर्य देव 12 राशियों में गोचर(प्रवेश)करते हैं।एक राशि में सूर्य देव 30 दिनों तक रहते हैं और इस प्रकार से एक साल में 12 संक्रांतियां पड़ती हैं, लेकिन इन सभी संक्रांति में मकर संक्रांति और मीन संक्रांति को सबसे अहम् और महत्वपूर्ण माना जाता है।मकर संक्रांति के दिन तिल, गुड़, चावल और वस्त्रों का दान करना विशेष फलदायी व पुण्य का काम माना गया है। मकर संक्रांति पर खाया जाने वाला प्रसाद व खाद्य सामग्री जैसे तिल,गुड़, खिचड़ी,दही आदि न सिर्फ आरोग्यवर्धक होते हैं बल्कि हमारे शरीर को इम्यूनिटी भी प्रदान करते हैं। सूर्य की रौशनी जहां हमें एनर्जी, स्फूर्ति प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर पतंगबाजी के उत्साहपूर्ण माहौल में हमारे शरीर में इस स्फूर्ति और उल्लास का संचार होता है।कुछ लोग इस दिन गंगा नदी या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और पूजा भी करते हैं।यह दिन विशेष रूप से पुण्य अर्जित करने और आत्मशुद्धि के लिए पवित्र और पावन माना जाता है। इस त्योहार की खास बात यह है कि यह प्रत्येक वर्ष अमूमन 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि कभी-कभी यह त्योहार एक दिन पहले या बाद में यानी 13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है, लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थी।दरअसल, मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है और जब सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी का ही होता है। इस दिन सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है। वास्तव में,सूर्य देवता जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उस दिन को ‘संक्रांति’ के रूप में मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ,जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में गोचर यानी प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास भी खत्म हो जाता है, इसलिए इस दिन को बहुत ही शुभ व अच्छा माना जाता है। विदित हो कि मकर संक्रांति से शादी-विवाह या अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। पाठकों को जानकारी देता चलूं कि मकर संक्रांति सूर्य, पृथ्वी और ऋतुओं के बीच के संबंध को दर्शाने वाला पर्व है, जिसका न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्व है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। इस दिन सूर्य भगवान दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं और सूर्य के उत्तरी गौलार्ध की ओर झुकने के कारण दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं, तापमान में बढ़ोत्तरी होने लगती है। दूसरे शब्दों में,मकर संक्रांति से शीत ऋतु का अंत होने लगता है और वसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। यह समय कृषि व किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन से फसल कटाई(तिलहन,दलहन) का मौसम शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं, क्यों कि सूर्य से हमें भरपूर मात्रा में विटामिन डी मिलता है, शायद यही कारण भी है कि मकर संक्राति पर भगवान सूर्य देव की विशेष पूजा भी की जाती है।भारत में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं। मसलन,आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति, तमिलनाडु में इसे पोंगल, पंजाब और हरियाणा में इस समय चूंकि नई फसल का स्वागत किया जाता है, इसलिए इसे लोहड़ी या माघी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वहीं असम में माघ बिहू के रूप में इस पर्व को अत्यंत हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि मकर संक्रांति को खिचड़ी और उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। पाठकों को बताता चलूं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे मकर संक्रांति और खिचड़ी, गुजरात में इसे उत्तरायण, केरल में इसे मकर विलक्कू तथा कर्नाटक में इसे ‘एलु बिरोधु’ के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के मनाने के पीछे एक कथा है। हमारे सनातन शास्त्रों में यह निहित है कि भगवान शनिदेव के वर्ण यानी रूप को देख सूर्य देव ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया था। उस समय माता छाया(भगवान सूर्य की धर्मपत्नी) ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से पीड़ित होने का श्राप दिया। यह सुनकर सूर्य देव क्रोधित हो उठे। इसके बाद सूर्य देव ने शनिदेव और माता छाया के ठहरने वाले स्थान को भस्म कर दिया। कालांतर में यम देव ने सूर्य देव के क्रोध का शमन किया। साथ ही सूर्य देव को माता छाया के लिए अपने क्रोध को स्नेह में बदलने का अनुरोध किया। तब सूर्य देव ने माता छाया को क्षमा किया। इसके बाद सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने पहुंचे। कहते हैं कि सूर्य देव के मकर राशि में गोचर या प्रवेश करने की तिथि पर ही दोनों की आपस में भेंट हुई थी। उस समय घर पर कुछ और नहीं होने पर शनिदेव ने अपने पिता सूर्य देव को तिल अर्पित किए थे। यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य को तिल अर्पित किए जाते हैं अथवा तिलों का भोग लगाया जाता है। कहते हैं यह मकर संक्रांति का ही दिन था जब पिता-पुत्र (सूर्य देव और शनिदेव) के संबंध मधुर हुए थे। मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी भी की जाती है, इसके पीछे भी धार्मिक कारण निहित हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा भगवान राम से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भगवान राम ने मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाई थी और वह इंद्रलोक मैं चली गयी थी‌ तब से आज तक इस दिन पतंगबाजी जरूर करते हैं। एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, इच्छा मृत्यु वरदान प्राप्त भीष्म पितामह ने भी इसी दिन यानी अपने प्राण त्यागे थे। इस संबंध में पाठकों को बताता चलूं कि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन की महिमा बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस दिन प्राण त्यागने वाले लोगों को सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं और राजा भगीरथ के साथ कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई गंगासागर तक पहुंची थीं। तभी से यह मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन धरती पर अवतरित मां गंगा के पावन जल से स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी
पापों का नाश होता है। यह वही दिन है जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की असुरों पर विजय को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि इस दिन भगवान विष्णु का भी विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है। अंत में, आप सभी को भारतीय सनातन संस्कृति के इस पावन पर्व की मंगलकामनाएं, शुभकामनाएं। जय-जय।

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर

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