समयानुसार चलें
समयानुसार चलें
एक उम्र आने के बाद बुढ़ापे में आदमी को घुलमिल कर सबके साथ समता से रहना चाहिये । प्रकृति तो अपना काम करती ही है ।हमारे चाहने से कुछ नहीं होता हैं इसलिए जिस प्रकार हमने बचपन को उल्लासपूर्ण बनाया, जवानी को प्रेमपूर्ण बनाया, उसी प्रकार बुढ़ापे को भी हम सहज रूप से स्वीकार करते हुए आनंदपूर्ण बनाने का सही से प्रयास करें ।जैसा करोगे वैसा ही तो पाओगे ।जैसा बोओगे वैसा ही तो काटोगे । धर्म की होगी जय ।पाप का होगा क्षय । प्यार दोगे तो पाओगे बदले में बहुत सा प्यार ।घृणा से बनता है सामने वाला खूंखार । मुस्कुराहट पाने के लिए पहले स्वयं तो मुस्कुराओ और गीत गाने के लिए पहले स्वयं तो गुनगुनाओ ।जब यही जीवन से जुड़ा दस्तूर हैं तो फिर उसकी असलियत से क्यों होता आदमी व्यर्थ में दूर है ।प्रकृति का यह नियम है कि जिसके पास जो होता है वह वहीं बांटता है।मूल बात है वैसा ही वह पाता है जैसा वह सबके साथ बाँटता है । हम सभी जानते हैं कि यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है।हर आत्मा अपना समय पूर्ण होने पर इस संसार के रिश्ते-नाते यंहिं समाप्त करके अपने किये गये क़रमों के अनुसार अगला रूप धारण करती है। पर यह आज के समय का गूढ़ प्रश्न है कि इंसान बुढ़ापे में भी मृत्यु से पूर्व जो जीवन जी रहा है उसके बारे में कोई चिंतन करता है क्या ? मुझे लगता है कि अधिकांश लोग इस जन्म की व्यवसथा और अपने परिवार वालों के भावी जीवन की चिंता में अपना पूरा जीवन समाप्त कर देते हैं।इंसान सब कुछ जानते हुये भी अनजान बना रहता है कि कौन से ग़लत क़ार्य करने से पाप के क़र्म बंधते हैं और कौन से नेक क़ार्य करने से पुण्य करम अर्जित होते हैं। जब इस संसार में जन्म लिया है तो इस बात का हर समय स्मरण रहे कि मुझे मनुष्य जन्म मिला है।मुझे अब अपना यह बुढ़ापे का जीवन सात्विकता के साथ जीना है और जीवन की सच्चाई को जानते हुये कोई भी ऐसा ग़लत क़ार्य नहीं करना जिससे पाप के करमों का बंधन हो।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )