कर लें नूतन हमारा मन
कर लें नूतन हमारा मन
हम जैसे नूतन वर्ष में प्रवेश कर रहे है ठीक इसी तरह अगर हम मन में कुछ नूतन को जगह दे दे । जिससे हमारा मन सकारात्मक की ऊर्जा से भरा रहेगा । किसी ने कहा की -है चुनौती जिन्दगी में हर कदम पर,अंधेरी गलियों से भी होगा गुजरना। कौन कब तक हमारा साथ देगा फिक्र कैसी?आखिर तो है अकेले ही सबको चलना। दूर मंजिल,राह भी है कठिन-दुर्गम,व्यर्थ चिंतन मे समय फिर क्यूँ गंवाऊं? सारथी हूँ सूर्य की पहली किरण का अंधेरों से दोस्ती कैसे निभाऊँ? रात के आगे नया प्रभात होगा, जागरण के मंत्र का शंखनाद होगा। परिवर्तन का चक्र ये चलता रहेगा,सृजन नूतन,पुरातन का नाश होगा। है नियम कुछ सृष्टि के शाश्वत- सनातन,हर घटना पर फिर मैं क्यूँ आंसू बहाऊं? सारथी हूँ सूर्य की पहली किरण का, अंधेरों से दोस्ती कैसे निभाऊं? क्षण में ! एक कोण से !अवलोकन ! या सामान्य व्यक्तिगत ज्ञान से !
आदि से होता नहीं कभी पूर्ण नूतन उद्द्घाटित ।करें परीक्षण यदि नित ! एक नूतन पक्ष उभर आता समक्ष प्रति नित ! बार -बार स्वाध्याय से एक शब्द के असंख्य अर्थ का निकलता रहता
कोष नित नूतन ज्ञान से भरता रहता ! जयाचार्य ने निरंतर अनेकों बार आगम का स्वाध्याय किया ! खोज लाते नित नूतन अनेक शब्द रत्न! अनेक़ांत का सिद्धांत लाता सत्य के और भी निकट !
Parichit कराता द्रव्य की अनंत पर्यायों को , कराता वाक़िफ़ सत्य की गहरायी को ।ज्ञान सत्य व नूतन की खोज में रहो सदा पिपासु ! नहीं होना बस अपने ही ज्ञान से संतुष्ट ! पुरुषार्थ करें चिंतन मनन और समीक्षा में निज नित ! होगा विकास निखार और परिष्कार सिद्ध ! जिससे हो जाएगा जिन से आमूलचूल सकारात्मक हमारा मन। यानी नवीन चेतना का जन्म हो जाएगा।
इस पर हम गम्भीरता से अवश्य चिन्तन करें ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)