सही राह सुख और खुशी की
सही राह सुख और खुशी की
एक घटना प्रसंग किसी ने प्रश्न पूछा की सुख और खुशी की राह कौनसी ? एक व्यक्ति ने कहा की जिसके पास पैसे है वह सुखी और खुश । दूसरे ने कहा रात – दिन देखते सुनते आदि हो बड़े धनाढ़्य है वह सुखी और खुश । तीसरे ने कहा की पैसा ही सुख और खुशी बोलता हैं । आदि – आदि । तब एक विद्वान सज्जन ने मार्मिक उतर दिया की जिसने अपरिग्रह को अपना लिया वह सुखी और खुश हैं । मार्मिक जवाब सुन सब शान्त हो गये । सही में खुशी का संबंध न साधनों से है न ही साधनों की संपन्नता से है बल्कि यह तो अपने – अपने चिंतन से संबंधित है । जिसका सम्बन्ध हमारे मन की सकारात्मक प्रसन्नता से है । मन की तृप्ति ही हमको आत्मतुष्टि देती है । इसी से हमको खुशियों की प्रविष्टि मिलती हैं ।जो अपने चिंतन से इसका विश्लेषण करता है वह सही से खुशियों के क्षण खोज लेता हैं । जरूरतें सबकी पूरी हो ,ये काम्य है और होनी भी चाहिए,पर और और की आपाधापी का कोई ओर छोर नहीं होता हैं । कहा गया है कि क्रोध हमारी आंखों में रहता है । मान हमारी गर्दन में ,माया हमारे पेट में रहती हैलेकिन लोभ जिसे असंतुष्टि भी कहते हैं । वो हमारे शरीर के एक एक कोशिकाओं में रहता है ।लोभ को सब कषायों का बाप कहा गया है । तभी तो सब कषाय छूटने के बाद सबसे अंत मे 10वें गुणस्थान में लोभ छूटता है । वीतराग बनने के समय में लोभ छूटते ही वीतराग बन जाता है जीव।हम अपने विवेक से हर पल अप्रमत्त रहने की जागरूकता बरतते हुए दोनों की भेदरेखा को समझते हुए आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद सभी तरह की होड़ को छोड़कर, जिसके पास आवश्यकता की पूर्ति करने में भी दिक्कत हो,उसके सहयोग करें अपने आकांक्षाओं का विसर्जन करके।इससे हमें आत्मतोष मिलेगा जो कुछ और से नहीं मिल सकता। यही है सही राह सुख और खुशी की ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )