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बढ़ती उम्र

बढ़ती उम्र
कहते है कि बढ़ती हुई उम्र एक वरदान है क्योंकि हर किसी को
उम्र का यह दौर नहीं मिल पाता हैं । कर्मों के अनुसार आयुष्य का
योग निर्धारित हैं । बढ़ती उम्र अक्सर कई बीमारियों और समस्याओं आदि की वजह बन जाती हैं । उस समय अपने परिवार की जरूरतमहसूस होती है । क्योंकि उसके अभाव में जीवन काटना मुश्किल हो जाता है । जवानी में तो परिवार का साथ न हो तो व्यक्ति को इतनामहसूस नहीं होता है क्योंकि उस समय शरीर में शक्ति होती है, परिश्रम आदि वह कर सकता है।
परन्तु कहावत है जवानी जाकर आती नहीं है और बुढ़ापा आकर जाता नहीं है । बुढ़ापा जीवन का ठहराव है जो हर किसी को नहीं मिलपाता हैं । उस समय बढ़ती उम्र में अपनी रोजमर्रा की सभी जरूरत के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। अपने जीवन के शरद बेला मेंजिंदगी जीने का सबसे अच्छा तरीका बच्चों से बात-बात पर रूठना, शिकायतें करना और जरूरत से ज्यादा अपने आदेश मनवाने आदिकी इच्छा नहीं होनी चाहिए। जो परिवार में हो रहा है उसमें हस्तक्षेप ना करते हुए मौन रहना चाहिये क्योंकि नई पीढ़ी किसी तरह काहस्तक्षेप पसंद नहीं करती है । धन की व्यवस्था ऐसी करनी चाहिए कि आय का स्त्रोत बना रहे । परिवार में परिवार के अनुरूप ढलने कीप्रवृत्ति बनी रहे ।उस समय यदि इंसान की सोच तंग होगी तो उसकी जिंदगी एक जंग हो जाएगी । इसलिए प्रभु का स्मरण करते हुएप्रसन्न और आनंद से रहे। जितना हो सके अपने आपको व्यस्त रखना , नकारात्मक सोच से बचे रहना आदि-आदि हो ।मुख्य बात मनको सुन्दर रखते सदा खुश रहिए और दूसरों को खुशियाँ
बाँटते रहिए । तब देखिए वृद्धावस्था अभिशाप नहीं अपितु यह परमानन्द से भी कम नहीं हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोंरावड़ )

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