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अंतराष्ट्रीयलेख

अमेरिकी टैरिफ: भारत को नुकसान या फायदा ?

admin
Last updated: अप्रैल 5, 2025 6:31 अपराह्न
By admin 23 Views
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16 Min Read
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हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ की घोषणा की है। गौरतलब है कि ट्रंप के 60 देशों पर पारस्पिरक टैरिफ लगाया है। इनमें भारत भी शामिल है। अमेरिका ने भारत पर 27 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया है। यहां यदि हम टैरिफ की बात करें तो यह वस्तुओं के आयात पर लगाए जाने वाला सीमा शुल्क या आयात शुल्क है, जिसे आयातक की तरफ से सरकार को देना होता है। आम तौर पर कंपनियां इनका बोझ उपयोगकर्ताओं पर डालती हैं। दूसरे शब्दों में, इसका असर आम लोगों की जेब पर ही पड़ता है। वहीं यदि हम जबाबी टैरिफ की बात करें तो यह शुल्क व्यापारिक साझेदारों की तरफ से लगाए जा रहे शुल्क में वृद्धि या उच्च शुल्क के जवाब में लगाया जाता है। ट्रंप की टैरिफ घोषणा से वैश्विक व्यापार पर एक नया असर पड़ना स्वाभाविक ही है। टैरिफ मैन द्वारा टैरिफ की घोषणा के बाद शेयर बाजार में भी गिरावट देखी गई। पाठकों को बताता चलूं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ का सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर देखने को मिला है और मार्केट ओपन होने के साथ ही बीएसई सेंसेक्स व एनएसई निफ्टी बुरी तरह टूट गए।शेयर बाजार में गिरावट के साथ ही इंडियन करेंसी भी गुरुवार(3 अप्रैल 2025) को टूटी है और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 26 पैसे गिरकर 85.78 पर आ गया। न केवल भारतीय बाजार बल्कि यूएस स्टोक मार्केट भी क्रैश हुआ। पाठकों को बताता चलूं कि गुरुवार को एस एंड पी 500 में वर्ष 2020 के बाद से सबसे बड़ी एक दिन की गिरावट दर्ज की गई। डाऊ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 4.0% गिरावट के साथ 40,545.93 पर बंद हुआ। इसने 1,600 अंकों से अधिक का गोता लगाया। ट्रंप के टैरिफ ने निवेशकों में दहशत फैला दी है, और बाजार को लग रहा है कि इससे मंदी, महंगाई और कमजोर मुनाफे का दौर शुरू हो सकता है। कुल मिलाकर अमेरिकी बाजार छह प्रतिशत तक गिरा। मार्केट कैप करीब 2 ट्रिलियन डॉलर घट गया। यहां तक कि एप्पल और नाइकी के शेयर 15 प्रतिशत तक टूट गये। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एप्पल के आईफोन मुख्य रूप से चीन में बनाए जाते हैं और ट्रंप के टैरिफ का सबसे बड़ा असर भी चीन पर ही पड़ा है। बहरहाल,गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 26 प्रतिशत ‘रियायती पारस्परिक शुल्क’ लगाने की घोषणा की है, जो भारत द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए 52 प्रतिशत शुल्क का आधा है। पाठकों को बताता चलूं कि ट्रंप ने भारत को ‘बहुत कठोर’ बताया है। उन्होंने यह बात कही है कि, ‘यह मुक्ति दिवस है, एक ऐसा दिन जिसका हम लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। 2 अप्रैल 2025 को हमेशा उस दिन के रूप में याद किया जाएगा, जिस दिन अमेरिकी इंडस्‍ट्री का पुनर्जन्म हुआ, जिस दिन अमेरिका ने नियति को पुनः प्राप्त किया और जिस दिन हमने अमेरिका को फिर से समृद्ध बनाना शुरू किया।’ साथ ही, उन्‍होंने यह भी कहा है कि ‘हम अमेरिका को अच्‍छा और समृद्ध बनाएंगे।’ बहरहाल, जो भी हो डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ घोषणा से वैश्विक व्यापार पर असर पड़ता लाज़िमी ही है। पाठक जानते होंगे कि ट्रंप ने भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के तकरीबन सभी प्रमुख देशों पर पारस्परिक टैरिफ की घोषणा की है। उनकी घोषणा के तुरंत बाद ही बाजारों में हलचल देखने को मिली। अमेरिका का दावा है कि भारत पर 26 फीसदी का शुल्क, भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए गए 52 फीसदी टैरिफ के जवाब में है, जो उनके अमेरिका फर्स्ट एजेंडे का ही हिस्सा है। दरअसल, ट्रंप यह बात बहुत पहले से ही कहते आए हैं कि यदि कोई देश अमेरिकी सामान पर ज्यादा आयात शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आयात होने वाली चीजों पर ज्यादा टैरिफ लगाएगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत अमेरिकी वस्तुओं पर सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों में शामिल है और इसे देखते हुए हाल ही में ट्रंप द्वारा लगाया गया जवाबी शुल्क अप्रत्याशित नहीं है। वास्तव में भारत अमेरिका को काफी वस्तुओं का निर्यात करता है। पाठकों को बताता चलूं कि अमेरिका की नई टैरिफ पॉलिसी के तहत भारतीय उत्पादों पर 27 फीसदी तक टैरिफ लगाया जाएगा। इसमें एक यूनिवर्सल 10 फीसदी टैरिफ भी शामिल है, जो 5 अप्रैल से प्रभावी हो जाएगा। वहीं, 27 फीसदी टैरिफ 9 अप्रैल से लागू होगा। अमेरिका द्वारा घोषित इस नए टैरिफ से भारत के कई एक्सपोर्ट सेक्टर्स पर असर पड़ने की आशंका है। इनमें झींगा मछली, कालीन, गोल्ड जूलरी, चिकित्सा उपकरण जैसे उत्पाद शामिल हैं। गौरतलब है कि अमेरिका भारतीय झींगा मछली का सबसे बड़ा बाजार है और हाई टैरिफ के कारण भारतीय झींगा अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अमेरिका पहले से ही भारतीय झींगा पर डंपिंग-रोधी और प्रतिपूरक शुल्क लगा रहा है। भारत अपने झींगा निर्यात का 40% अमेरिका को भेजता है, जहां इसके मुख्य प्रतिस्पर्धी इक्वाडोर और इंडोनेशिया हैं। वास्तव में, कृषि क्षेत्र में अमेरिका के जवाबी टैरिफ का सबसे अधिक प्रभाव मछली, मांस और प्रसंस्कृत समुद्री भोजन के निर्यात पर पड़ेगा। वर्ष 2024 में इनका निर्यात 2.58 अरब डॉलर था। अब हालिया घटनाक्रम के बीच इस क्षेत्र पर 27.83 प्रतिशत से अधिक टैरिफ का भार बढ़ सकता है। इसी प्रकार से अमेरिका भारत से बड़ी मात्रा में कालीनों का भी आयात करता है। जानकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में यह(कालीन आयात) लगभग 2 अरब डॉलर का था। नए टैरिफ से इस सेक्टर पर भी व्यापक असर पड़ेगा। इतना ही नहीं अमेरिका भारत से रत्न और आभूषणों का भी बड़ी संख्या में आयात करता है।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने वैश्विक स्तर पर 32.85 अरब डॉलर के रत्न और आभूषण निर्यात किए, जिसमें अमेरिका का हिस्सा 30.28% (10 अरब डॉलर) था। नए टैरिफ से इस सेक्टर पर भी बहुत असर पड़ेगा। जानकारी के अनुसार तराशे हुए हीरे पर शुल्क 0% से 20% तक और सोने के आभूषणों पर 5.5-7% तक बढ़ सकता है। इतना ही नहीं,अमेरिका द्वारा चिकित्सा उपकरण निर्यात पर 27% टैरिफ लगाने से इस सेक्टर की ग्रोथ के लिए चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका को चिकित्सा उपकरण निर्यात 71 करोड़ 43.8 लाख डॉलर था। संक्षेप में कहें तो टैरिफ से हमारे देश के कृषि, ऑटोमोबाइल, दवा, स्वर्ण आभूषण जैसे क्षेत्रों पर बड़ा असर हो सकता है। वहीं, रसायन और दवा क्षेत्र में यह 8.6 प्रतिशत, प्लास्टिक के लिए 5.6, वस्त्र-परिधान 1.4, हीरे, सोने व आभूषणों के लिए 13.3 फीसदी, लोहा, इस्पात और आधार धातुओं के लिए 2.5 प्रतिशत, मशीनरी व कंप्यूटर के लिए 5.3 प्रतिशत, इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए 7.2 फीसदी व ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों के लिए टैरिफ का यह अंतर 23.1 फीसदी है। इतना ही नहीं,प्रसंस्कृत खाद्य, चीनी और कोको निर्यात पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि इसमें टैरिफ अंतर 24.99 प्रतिशत है। पिछले साल इसका निर्यात 1.03 अरब डॉलर था। इसी तरह, अनाज, सब्जियां, फल और मसाले के क्षेत्र में टैरिफ अंतर 5.72 प्रतिशत है। वास्तव में,टैरिफ अंतर जितना अधिक होगा, संबंधित क्षेत्र उतना ही अधिक प्रभावित हो सकता है।यहां पाठकों को बताता चलूं कि घरेलू उद्योग व निर्यातकों ने भारत के निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ के असर को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि शुल्क से बाजारों में कई वस्तुएं प्रतिस्पर्धा से बाहर हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन (34 फीसदी), वियतनाम (46 फीसदी), बांग्लादेश (37 फीसदी), थाईलैंड (36) फीसदी) और इंडोनेशिया (32 फीसदी) की तुलना में भारत पर लगाया गया टैरिफ कम ही है। इसलिए स्थिति तुलनात्मक रूप से भारत के लिए अच्छी हो सकती है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि वित्त वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। अमेरिका की भारत के कुल माल निर्यात में हिस्सेदारी करीब 18%, आयात में 6.22% और द्विपक्षीय व्यापार में 10.73% है।अमेरिका के साथ 2023-24 में भारत का व्यापार अधिशेष (आयात व निर्यात में अंतर) 35.32 अरब अमेरिकी डॉलर था। बहरहाल,यहां यह भी उल्लेखनीय है कि रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा में फार्मास्युटिकल्स उद्योग को छूट दी गई है।गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश देश का सबसे बड़ा फार्मा हब है। बद्दी, परवाणू और पांवटा साहिब में देश की सभी प्रतिष्ठित कंपनियां दवाओं का उत्पादन कर रही हैं। पाठकों को बताता चलूं कि ट्रंप ने जब टैरिफ की घोषणा की तो भारत पर 27 फीसदी टैरिफ तो लगाया लेकिन फार्मा उद्योग को इससे पूरी तरह बाहर रखा गया, जो राहत की बात है, लेकिन हिमाचल के बागवानों को शंका है। दरअसल, यह आशंकाएं जताई जा रही हैं कि अमेरिकी दबाव में भारत सरकार सेब पर आयात शुल्क घटा सकती है। इससे हिमाचल प्रदेश के सेब बागवान चिंतित हो गए हैं। पाठकों को बताता चलूं कि दवा के अलावा सेमीकंडक्टर, तांबे के अलावा तेल, गैस, कोयला, एलएनजी जैसे ऊर्जा उत्पाद टैरिफ के दायरे से बाहर रखे गए हैं। बहरहाल, यदि हम यहां पर भारत पर शुल्क की बात करें तो इस्पात, एल्युमीनियम और वाहनों तथा कलपुर्जों पर पहले से ही 25% शुल्क लागू है। शेष उत्पादों पर 5 से 8 अप्रैल के बीच 10% का मूल (बेसलाइन) शुल्क लगेगा और 9 अप्रैल से बढ़कर 27% हो जाएगा। भारत के लिए अमेरिका द्वारा लगाया टैरिफ कितनी बड़ी चुनौती है तो इस संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की स्थिति अपने प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में बेहतर है। भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अपनी भूमिका बढ़ाने का अवसर मिल सकता है। लेकिन इसके लिए उसे व्यापार को आसान बनाना होगा, लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा। यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि अमेरिका ने जो टैरिफ लगायें हैं वे डब्ल्यूटीओ के अनुरूप नहीं हैं। मसलन,ये शुल्क स्पष्ट तौर पर विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन करते हैं। यह एमएफएन (तरजीही राष्ट्र) दायित्वों तथा बाध्य दर प्रतिबद्धताओं के भी खिलाफ हैं। सदस्य देशों को इनके खिलाफ डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान तंत्र का दरवाजा खटखटाने का पूरा अधिकार है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि पीएम नरेंद्र मोदी ने फरवरी में अमेरिका यात्रा के दौरान 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने की घोषणा की थी। वास्तव में, दोनों पक्षों का लक्ष्य इस साल अक्तूबर तक सौदे के पहले चरण को अंतिम रूप देना है, और उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत की ओर से अधिकांश चर्चा इन शुल्कों के कुछ प्रतिकूल प्रभावों को कम करने पर केंद्रित होगी। कहना चाहूंगा कि टैरिफ संकट से भारत को अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों में विविधता लाने का अवसर प्रदान करेगा। हालांकि यह भी स्पष्ट है कि ट्रंप की रेसिप्रोक्ल टैरिफ पालिसी असल प्रभाव आने वाले समय में स्पष्ट होगा, लेकिन इसने वैश्विक व्यापार को एक नया मोड़ तो दिया ही है। निस्संदेह यह हमें हमारी आर्थिक नीतियों को फिर से परखने का समय है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जरूरत इस बात की है कि सरकार व उद्योग मिलकर ऐसी ठोस रणनीतियां बनाएं, जिससे हम टैरिफ आपदा में निहित अवसरों का अधिकतम लाभ उठा सकें। बहरहाल, हमारे देश के लिये अच्छी बात यह है कि हमारे मुख्य प्रतिस्पर्धी-चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और थाईलैंड पर हम से कहीं अधिक शुल्क लगाया गया है। हाल फिलहाल, सरकार को यह उम्मीद है कि वाशिंगटन के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर काम चल रहा है, जिसके जरिये घरेलू उद्योग को टैरिफ वृद्धि के दुष्प्रभावों से निपटने में मदद मिल सकती है। वास्तव में,अतीत से सबक लेकर भारत को नई स्थितियों का लाभ उठाने के लिये बेहतर ढंग से तैयार रहना चाहिए। हमें अपने पड़ौसी चीन से भी सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्यों कि चीन भारत को कहीं न कहीं प्रतिस्पर्धा के बाजार में भारत को शिकस्त दे सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन कम लागत वाले सामानों के जरिये भारतीय बाजारों को प्रभावित करने की कोशिश कर सकता है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि आज भारत दुनिया का सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है, इसलिए हमें यह चाहिए कि हम अपनी श्रमशक्ति के बेहतर उपयोग की दिशा में गंभीरता से काम करें। हमें यह चाहिए कि हम कौशल विकास(स्किल डेवलपमेंट) पर अपना ध्यान केंद्रित करें। कहना ग़लत नहीं होगा कि कुशल कामगारों से हम वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हो सकते हैं। इतना ही नहीं, हमें अपना विदेशी निवेश भी बढ़ाना होगा। हमें अपने डोमेस्टिक इन्वेस्टमेंट को भी गति देनी होगी। जरूरत इस बात की है कि हम अपने निर्यात को अन्य देशों में बढ़ाने के लिए काम करें, तभी हम वास्तव में अमेरिकी टैरिफ संकट का सामना करते हुए अपने देश की अर्थव्यवस्था और विकास को और अधिक गति दे पायेंगे।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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