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परमार्थ है प्रकृति का स्वभाव

परमार्थ है
प्रकृति का स्वभाव
संवेदना मानव का स्वभाव हैं । जो भाव हम स्व-पर अनुकंपा का रखते है इसका सकारात्मक प्रभाव सब पर होता हैं ।वत्सल भाव, समर्पण भाव ,सेवा भाव , सहयोग भाव आदि इन सबका कही न हो ज़िन्दगी में कभी भी अभाव । क्योंकि गुरुओं ने कहा है कि उदारता से ही प्रभुता का द्वार खुलता है । जिनके मन में करुणा-दया के भाव हैं उन्हें ही महान कहलाने का अधिकार है ।पराई-पीड़ को हर के मन को संतुष्ट करने की राह मानव कि प्रकृति के उदार स्वभाव की वृत्ति को दिखाता हैं । प्रेम से बनाएं सबको अपना । गुणीजन कह गए प्रेम रतन धन जिसने पा लिया उसके लिए संसार मे सुख ही सुख है । प्राणी जानता है कि इस जन्म में सांसारिक व्यवहार में सिर्फ अपना प्रेम ही बच्चों, परिवारजनों, सहकर्मियों आदि सभी को जीत सकता है। बाकी सभी तरीक़े व्यर्थ है । इंसान ही क्या में तो कहता हूं कि जब हम पेड़ उगाते हैं तब उसका भी प्यार से पोषण करना पड़ता है। केवल उसे पानी देकर डाँटने से वह नहीं बढ़ेगा। अपने परे। पूर्ण व्यवहार से बड़े सुंदर फल-फूल देगा। तो ज़रा सोचिए प्रेम मानव को कितना अधिक प्रभावित कर सकता है।पढ़ा था कि प्रेम से जब भर जाते हैं प्राण पाषाणों में दिख जाते भगवान। मानव तो प्रकृति की सबसे सुन्दर कृति के रूप में माना जाता है ।मानव के मन पर भी प्रकृति के उदार स्वभाव की वृत्ति होनी चाहिए ।क्योंकि परमार्थ है
मानव कि प्रकृति का स्वभाव ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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