संतुलन का आधार
विजय गर्ग
जो लोग अतीत में उलझे रहते हैं, वे यादों का आनंद लेते हैं। इससे पता चलता कि ऐसे लोगों को पूर्व के अनुभवों को याद करने में सांत्वना, खुशी या संतुष्टि मिलती है। यादें भावनात्मक मूल्य रख सकती हैं और पहचान की भावना में योगदान कर सकती हैं । पुरानी यादें निस्संदेह शक्तिशाली भावना हो सकती है, लेकिन वास्तविक जीवन का आनंद वही लोग ले सकते हैं, जो वर्तमान और अतीत में संतुलन रखते हुए आज मिल रहे आनंद की अनुभूति को अहमियत देते । हालांकि यादों को संजोना कई बार सार्थक सिद्ध तो होता है, लेकिन अतीत पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करते रहने से किसी भी कार्य में संलिप्त होने और वर्तमान में जीने की क्षमता को बाधित कर सकता है।
कुछ अगर हम भूतकाल की स्मृतियों में खोए रहते हैं तो भविष्य की ओर यात्रा में विघ्न उत्पन्न हो सकता है । भूतकाल की स्वर्णिम यादों और त्रुटियों से सीखकर भविष्यकाल को निश्चित ही स्वर्णिम किया जा सकता है। अतीत के सबक और अनुभव पर विचार किए बिना वर्तमान में तल्लीन रहने से भी सफलता के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि अतीत और वर्तमान में संतुलन बिठाया जाए। लोगों को अतीत को याद करके आनंद मिलता है, जबकि कई लोग जीवन में समृद्धि का स्वाद लेने के लिए पूरी तरह वर्तमान में मौजूद रहने के पक्षधर होते हैं। जबकि संभव है कि अतीत में इसी तरह वर्तमान को ही सब कुछ मान लेने से भविष्य भी गंवा देने के उदाहरण रहे हों। जरूरत अतीत में गुजर चुके उस वर्तमान के परिणाम से सीख कर ही वर्तमान को जीने की कोशिश करने की है ।
अतीत के अपने रिश्ते-नातों को याद करके आज के सामाजिक परिवेश में तुलना करके और अपने से लगने वाले रिश्तों से आघात को याद करके दुखी होने से बेहतर है अपने आप दूरी बना ली जाए, क्योंकि भौतिकतावाद के जोर पकड़ते दौर में किसी से उम्मीद रखना बेकार है। हालांकि जो लोग बिना संवेदनशील हुए किसी को आघात पहुंचाने से नहीं हिचकते, उन्हें भी अपने किसी नाजुक मौके पर संवेदनशील व्यवहार और स्पर्श की जरूरत पड़ती है।
आज के दौर में एकल परिवारों में पारिवारिक मूल्य का ह्रास हो रहा है, वहीं आने वाली पीढ़ी के लिए उन रिश्तों को आजीविका की दौड़ में लंबे वक्त तक निभा पाना असंभव होता जा रहा है। ऐसे में अगर किसी से अपेक्षा की जाए और वह उम्मीद पर खरा न उतर पाए तो मन दुखी होता है । यह जरूरी नहीं कि जो रिश्ते भूतकाल में प्रगाढ़ थे, वे जीवनपर्यंत पीढ़ी दर पीढ़ी वैसे ही कायम रहें । समय बीतने के साथ-साथ हमारे जीवन में लोगों की वास्तविक प्रकृति का पता चलता है जो उन लोगों के बीच अंतर कर सकता है जो वास्तव में हमारे करीब हैं और जो अपरिचित हैं। जीवन में रिश्तों की प्रकृति और महत्त्व समय के साथ बदल सकते हैं। जो रिश्ते पहले महत्त्वपूर्ण थे, वे आगामी पीढ़ियों में उसी रूप में नहीं रह सकते। हर पीढ़ी अपने अनुभवों, विचारों और सामाजिक परिवेश के अनुसार रिश्तों को नए तरीके से समझती है और उन्हें अपनाती है ।
समय के साथ हमें यह भी पता चलता है कि लोगों की प्रकृति में कितना बदलाव हो सकता है। कुछ लोग विकासशील होते हैं, जबकि कुछ लोग स्थिर रहते हैं और कुछ लोगों की प्रकृति में दृष्टिकोण और मान्यताओं में परिवर्तन आ सकता है । इसलिए हमें हर रिश्ते को समय- समय पर दोबारा मूल्यांकन करने की जरूरत होती । यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि व्यक्तियों की बदलती प्रकृति और उनकी नई सोच को हम कैसे समझ सकते हैं और उसके अनुरूप अपने संबंध बना सकते हैं।
व्यक्तिगत विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसे जीवन के हर चरण में अपनाया जाना चाहिए। असलियत यह है कि जीवन में किसी से भी समर्थन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। बिना अपेक्षा के मिला समर्थन स्थायी महत्त्व का होता है। चुनौतियों और समर्थन की कमी के बावजूद व्यक्ति को दृढ़ होना चाहिए और निरंतर बढ़ते रहना चाहिए । संभव है कि अतीत में किसी मित्र या प्रियजन ने कभी साथ दिया हो, लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि वर्तमान में भी वह साथ खड़ा हो पाएगा। इसलिए अतीत और वर्तमान के रिश्तों में भी सामंजस्य रखना चाहिए । ऐसे में किसी से उम्मीद के प्रतिबिंब और उपस्थिति के बीच संतुलन खोजने से ही संतोषजनक जीवन आनंद का अनुभव प्राप्त हो सकता है। इसलिए वर्तमान में जीना ही आज के दौर में सफलता की कुंजी सिद्ध हो सकता | जीवन का मूलमंत्र तो यही है कि उज्ज्वल भविष्य की खातिर भूतकाल से सबक हुए वर्तमान को भरपूर जिया जाए ।
अतीत और वर्तमान दोनों का महत्त्व है और दोनों के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है । अतीत से हमें अनुभव और सीख मिलती है, जो हमें वर्तमान में सहायक साबित हो सकती है। वर्तमान हमें उस संबंध को महसूस करने में मदद करता है जो हम अपने अतीत से संबंधित अनुभवों से प्राप्त करते हैं। संतुलन को खोजना हमारी शांति और संतोष के लिए महत्त्वपूर्ण है ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट