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हे मानव! हिम्मत मत हार

हे मानव! हिम्मत मत हार
किनारों से थपेड़े खाकर हिम्मत लहरों की कभी टूटती नहीं हैं ।
झंझावतों से जूझकर चट्टानें कभी झुकती नहीं हैं ।भूकंप थर थरा दे भू को परन्तु जीवन रुकता नहीं हैं । रोके बाधाऐ कितनी भी परन्तुमहापुरुष की गति रूकती नहीं हैं ।अभय संयम आदि बिना
मोक्ष की गति मिलती नहीं हैं । उठती रहती लहरें मन्दमन्दार ।कभी उठे ज्वारभाटा विराट । कभी उठे लहरें लहराती रहती शांत स्वभाव।जीवन अपना भी कुछ ऐसा ही है आते रहते जीवन में उतार – चढ़ाव। कभी सुख शान्ति की बजे बांसुरी ।कभी चले ठंडी -ठंडी मस्त हवातो कभी आजाये आंधी तूफ़ान। घर बंद हो तो उसमें धूल, मिट्टी,मकड़ी के जाले आदि जम जाते हैं उसी तरह यदि दिमाग खाली हो तोमन इधर-उधर भटकने लगता है।नकारात्मक सोच जल्दी दिमाग में आने लगती है। भटकते विचारों को हटाना हो तो हमें हमारा दिमागसकारात्मक सोच विचार में व्यस्त रखना होगा तो जीवन में कुछ नया होगा । हमे मानसिक शांति मिलेगी। हम प्रकृति से भी काफी कुछसीख व प्रेरणा ले सकते हैं । जिस प्रकार सूरज रोशनी देता है उसी तरह जीवन में किसी के उजाला कर सकते हैं । जल हमें हरपरिस्थिति में धैर्य व बाधाओं को पार करना सिखाती है। पृथ्वी हमें धैर्य रखने और दृढ़ता की शिक्षा देती है। वायु गतिशील रहना सिखातीहै ।आग स्वयं जल कर उष्मा और ऊर्जा प्रदान करना सिखाती है। आकाश अनन्त संभावनाओं की सीख देती है। प्रकृति हमारी श्रेष्ठतमशिक्षक है ।हम भी अपने मन को स्थिर रख कर निराशा से बच सकते हैं, जीवन में उतार चढ़ाव तो आता ही रहता है बस दिमाग एवं मनको संतुलित रखना जरूरी हैं। हर पतझड़ बीतता ही बीतता है और बसंत का आगमन होता ही होता है। फिर क्यों मुसीबतों में हमे हिम्मतहारना है। समय कैसा ही हो बीत ही जाता है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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