रद्दी तक तोली जाती है
रद्दी तक तोली जाती है
आदमी को अहं में कभी मदहोश नहीं होना चाहिये । यह ऐसा धीमा जहर होता है जो स्वयं का नाश करने वाला होता है । अपने जीवन में हो स्वच्छता भरे विचारों की शृंखला जो हम ऐसे रखे की जिसके लिए मन में भाव हो सिर्फ़ अर्पण और समर्पण का।ज़िससे मन हो स्वच्छ सुंदर जीवन में समता की स्थिरता तो हमारे कदाचित जन्म जन्मांतर के मैल परिष्कृत हो सकेंगे । मन एक मंदिर है यदि मन मे बैर है तो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा या अन्य धार्मिक जगह पर जाना सिर्फ एक सैर है क्योंकि अंहकार की आरी और कपट की कुल्हाड़ी किसी भी तरह के संबंधों को काट ड़ालती है । इसलिए कषायों की सफ़ाई बेहद ज़रूरी हैं उन पर नियंत्रण का अंकुश और संकल्पों की झाड़ पोंछ हमेशा होनी चाहिए। छोड़ने लायक बात को छोड़े , जानने लायक बात को जाने एवं ग्रहण करने वाली बात को ग्रहण करें (आत्मसात करें) । अतः अहं से बाहर निकलकर मैं मैं की जगह हम और ज्यादा से ज्यादा आप शब्द का प्रयोग करते हुए विनम्रता,सरलता आदि को आत्मसात करते हुए होठों पर सदा मुस्कान रखते हुए किसी के भी हम जालसाजी बहकावें में आने से बचाव करते हुए, किसी के प्रति घृणा करने से बचते हुए , हम ज्ञानार्जन करते हुए ज्ञान को अर्जित करते हुए , मित्रों के प्रति वफादारी व सच्ची मित्रता निभाते हुए सभी नगीनों के प्रति सचेत रहतें हुए हँसी-खुशी अपनी जिंदगानी जीते रहें। क्योंकि हमे यह सोचना चाहिए कि रद्दी तक यहाँ तोली जाती है तराज़ू में बिकने से पहले तो हमे भी कोई परख रहा है और इसमें बुरा भी क्या है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)