बना लें खुद को खुद से बेहतर
बना लें खुद को खुद से बेहतर
एक प्रसंग किसी ने कहा की खुद को खुद से बेहतर कैसे बनाये ?
तो दूसरे ने कहा की इसका उपाय पाँच महाव्रतधारी त्यागी सन्तों के पास है वो बेहतर बता सकते है । तो प्रथम ने कहा की सन्त आदि आस – पास में नहीं हो तो कैसे करे ? तो दूसरे ने कहा की बहुत ही साधारण है बात ,मुश्किल जरुर है परन्तु असम्भव नहीं है वह यह की अपनी गलती , कमी आदि कोशिश करके उसको छोड़ते जाओ और फिर आगे दूसरी को छोड़ते जाओ । ऐसे करते करते तुम अपनी मंजिल को पाओगे । बात बहुत मार्मिक है लेकिन अगर इसको हम अपने जीवन में सही से आचरण में ले आये तो बेहतर इन्सान बन सकते है । माना की महापुरुषों की जीवनी प्रेरणा दे सकती है लेकिन स्वयं के द्वारा स्वयं का प्रयास जीवन में अच्छी खुशहाली व बेहतर होने का व्यवहार आचरण में लायेगा । मैंने देखा सुना समझा है की अनेक साधु – साध्वीयाँ तेरापंथ धर्म संघ के परिषद में आते ही कितनी – कितनी देर तक धारा – प्रवाह बोलकर सबको बाँध लेते है कितनी बार तो घड़ी का भी पता नहीं लगता है और – और व आगे – आगे की सुनने की ललक लगी रहती है । मैं कितनी बार प्रमोद भावना से बोल देता हूँ की आप व्याख्यान फरमाओ तो घड़ी रोक दिया करो और खत्म होते ही चालू कर दिया करो । हमारा काम भी हो जायेगा और सुनने को सुनने भी मिलता रहेगा।बेहतर होना अपना असम्भव नहीं है । आदमी के पास प्रखर बुद्धि का ए अनूठा बल है ।बुद्धि ही मानव जीवन का सबसे उत्तम संबल है । बुद्धि हमे प्रकाश देती है ।बुद्धि हमें विश्वास देती है । बुद्धि के सकारात्मक उपयोग से हमें बड़ा बल भी मिलता है व इसे सही दिशा प्रदान करने से हमें सुहाना कल भी मिलता है । सफलता के अनेक रूप व अनेक भाषाएं, परिभाषाएं आदि है । सबकी अपनी अपनी समझ है । हम किसे-किसे , कहाँ – कहाँ आदि बतलाएँ । सफलता पाएं तो किसकी ? जीने की या जीवन की ? सफलता भौतिक या आध्यात्मिक, पदार्थ जन्य या आत्मा जन्य, सफलता स्थाई या अस्थाई धन की, पद की या वह प्रणम्य । हमारी तो बस सदैव स्थाई सफलता को प्राप्त करने को ही प्यास हो क्योंकि हमारे मन में तो सिर्फ स्थायित्व के प्रति ही छिपा विश्वास अखूट है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )