कभी न खोएँ आपा
कभी न खोएँ आपा
कभी – कभी जीवन में ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि मानव कोई कारण विशेष से या कर्मों के योग आदि से अपने पर संयम नहीं कर पाता हैं जिसके परिणामस्वरूप वह अपना आपा खो देता है । मजबूत जड़ो वाले पेड़ पर आँधियों व तूफानों का कोई असर नहीं होता हैं जो थोड़ी सी चोट से ढहकर नींचे गिर जाये । उनका ऐसा कमजोर घर नहीं होता है । जिसका डिगता नहीं कभी भी मजबूत मनोबल उसका शानदार व प्रभावक कल निश्चित होता है ।प्रबल प्रकल्प और सबल संकल्प से ही कठिन से कठिन कार्यों की क्रियान्विति होती है ।दृढ़ मनोबल से ही सफलता में उनकी परिणति होती है ।परिस्तिथियाँ विपरीत आती हैं मन को डगमगाती हैं वज्र सा हो कठोर निश्चय तो नहीं फिर हिला पाती हैं । सशक्त ज़ज्बे को नहीं कर सकता कोई प्रकंपित क्योंकि फ़ौलादी हौसलों के समक्ष रौद्ररूप तूफ़ान भी हो जाता है विचलित । कभी ग़ुस्से में अगर हम अपना आपा खोने लगें तो कुछ क्षण तत्काल वही रुकें व अपने को संयत करें और सोचें और लेखा-जोखा लें कि भगवान कितनी बार हमारी भूलों पर संयत रहते हैं । हमारी भूलों को वह भुलाते रहते हैं। इसलिए जल्दबाज़ी में आपा खो कर हम अपनों को व किसी भी दूसरे को दूर न करें। क्योंकि कहते है कि मानव जीवन परिवर्तित है इसमें कब क्या जो जाये मालूम नहीं होता है ठीक इसी तरह कब किस समय कहाँ किसी की अपेक्षा हो । इसलिए रहें सदा सबके साथ मिलकर अपनों में अपने में नहीं।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)