दिल्ली के मुखर्जी नगर जैसी आग की घटना यदि कभी देहरादून के किसी कोचिंग सेंटर में हुई तो भारी नुकसान हो सकता है। शहर में छोटे-बड़े करीब 250 से लेकर 300 कोचिंग सेंटर हैं, जिसमें से एकाध ने ही अग्निशमन विभाग से एनओसी ले रखी है।
एजुकेशन हब के नाम से मशहूर देहरादून में शिक्षण संस्थानों की भरमार है। राजधानी बनने के बाद से यहां उच्च शैक्षिक संस्थान व कोचिंग सेंटरों की बाढ़ सी आ गई है।
अग्निशमन विभाग ने गत वर्ष 56 कोचिंग सेंटर का निरीक्षण किया था। जिनमें अधिकांश में अग्निशमन सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। कुछ में उपकरण चलती हालत में नहीं मिले। लेकिन विभाग ने कार्रवाई के नाम पर इन्हें नोटिस जारी कर सिर्फ खानापूर्ति की है।
वर्षों से बिना एनओसी कुकुरमुत्तों की तरह खुल रहे इन कोचिंग सेंटरों में अग्निशमन, प्रशासन या पुलिस ने कभी पड़ताल की जहमत नहीं उठाई। गाहे-बगाहे अवैध निर्माण या सुरक्षा मानक पूरे न करने पर कांप्लेक्स या भवनों पर कार्रवाई करने वाला एमडीडीए भी आंखें मूंदे हुए है। इस संबंध में जिला अग्निशमन अधिकारी सुरेश चंद्र ने बताया कि मानकों के अनुसार हर कोचिंग सेंटर संचालक को अग्निशमन यंत्र लगाना जरूरी है। जल्द ही एनओसी न लेने वाले संस्थानों को नोटिस जारी किए जाएंगे।
घनी आबादी व संकरी गलियों में चल रहे कोचिंग सेंटर
दून में कुछेक बड़े कोचिंग सेंटर को यदि छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर में स्थिति भयावह है। ईसी रोड, सुभाष रोड, धर्मपुर, बल्लूपुर चौक, करनपुर, क्लेमेनटाउन, प्रेमनगर, वसंत विहार आदि क्षेत्रों में एक-एक, दो-दो कमरों में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। करनपुर में ही 100 से अधिक कई छोटे-छोटे कोचिंग सेंटर खुले हैं। जिनमें अधिकांश आवासीय परिसर में चल रहे हैं और इनमें सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। भीड़भाड़ वाले इन क्षेत्रों में कभी मुखर्जी नगर जैसी घटना हुई तो फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भी यहां आसानी से नहीं पहुंच पाएंगी।
संकरे हैं प्रवेश द्वार
करनपुर व आसपास के ज्यादातर कोचिंग सेंटर में प्रवेश द्वार भी बेहद संकरे हैं। ज्यादातर कोंचिंग सेंटर ऊपरी मंजिल पर चल रहे हैं। कई जगह एक ही बिल्डिंग में कई-कई कोचिंग सेंटर हैं। जिनमें एक-एक कमरे में सौ-सौ बच्चे पढ़ते हैं। यदि कोई हादसा हो जाए और भगदड़ मच जाए तो कई बच्चे बेमौत मारे जाएंगे।
बोर्ड से ढकी हैं खिड़कियां
कोचिंग सेंटर जहां भी चल रहे हैं उस इमारत का बाहरी हिस्सा पूरी तरह से प्रचार बोर्ड से ढका हुआ रहता है। सभी खिड़कियां प्रचार बोर्ड से छिप गई हैं। ऐसे में दमकल कर्मियों को खिड़की तक पहुंचने में भी खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। अलग निकासी द्वार नहीं ज्यादातर कोचिंग सेंटर में आने-जाने को एक ही गेट है, जबकि कम से कम दो गेट होने चाहिए। वहीं, अधिकांश कोचिंग सेंटर में स्मोक वेंटीलेशन यानी धुंआ निकलने की व्यवस्था तक नहीं है।