घमंड किसी का टिका नहीं
घमंड किसी का टिका नहीं
घमंड किसी का भी नहीं रहा हैं । टूटने से पहले गुल्लक को भी लगता है कि सारे पैसे सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी के हैं ।अतः घमंड किसी भी चीज का हो वह सदैव पतन की और ही ले जाता हैं । घमंड और पेट जब ये दोनों बढ़ते हैं तब इन्सान चाह कर भी किसी को अपने गले नहीं लगा सकता हैं । क्योंकि घमंड उसके हावी होता हैं । जिस प्रकार नींबू के रस की एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है उसी प्रकार मनुष्य का अहंकार भी अच्छे से अच्छे संबंधों को बर्बाद कर देता है । अतः अक्सर ऊँचाइयों को छूने पर इंसान अपनी वास्तविक पहचान भूल जाते हैं और जिस दिन अहंकार हावी होता है तब सिवाए पतन के और कुछ हासिल नहीं होता। जो बहुत घमंड करते थे वही अपने घमंड के कारण गिरे। मेरे चिन्तन से किसी को कभी भी घमंड नहीं करना चहिए । घमंड ही हार का द्वार हैं ।अहंकार का कारण है ।अतः हम अपने असली स्वरूप अर्थात मैं को न समझना जैसे ही व्यक्ति मैं को उसके असली रूप में देख लेता हैं उसका अहंकार विल्कुल वैसे ही अदृश्य हो जाता है । जैसे दीपक के जलने से अन्धकार का कोई अता-पता नहीं रहता हैं । विवेक हो कब ?कैसे ?किसका ?कहाँ ?कितना ?क्यों ?आदि का । जिससे हमारे हर कृत में आए निखार और सुधार ।नहीं हड़बड या तुरंत कोई करना निर्णय ।जब स्थिति हो नाज़ुक , क्रोध , मारा मारी की ,आ जाए बात और उद्वेग और संवेदनशील हो तो मसला धैर्य से सूझ – बुझ से निपटना होता हैं ।जिससे रहे सभी सुंदर सरस व कार्य में आए निखार और विकास। सबकी रहे शांति और ख़ुशी । हीनता ,कटुता ,घमंड , क्रोध आदि का कभी भी न रहे गहरा नामो निशान । जिससे हमारे मतभेद के क़िले दह जाए,घमंड चुर-चुर हो जाए , नफ़रत हमेशा के लिए दफ़न हो जाए और हम सब में से हम हो जाए ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )