देखना दृष्टव्य से आगे अदृश्य को
देखना दृष्टव्य से आगे
अदृश्य को
हमारी सोच हमारे जीवन का आचरण आदि जो दृष्टव्य है वहाँ तक ही सीमित नहीं रहे उससे आगे अदृश्य को भी देखे । गुरु तुलसी ने हमें सिखलाया । चिंतन, निर्णय और क्रियान्विति में न रखो अंतर । निर्णय करो सोच समझ कर । मत बह जाना भावुकता में। भावुक बनकर निर्णय लेना अपने आप को दुविधा में डालना । दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम ।न घर के रहते न घाट के ।अतः जो भी निर्णय लो लो सोच समझ कर ।परिणाम का दृश्य सामने देख कर।क्रियान्विति में न करो देर
न हो जाए कभी बहुत देर । किसी ने बड़ा पद प्राप्त किया हो या क़िस्मत से कोई धनाढ़्य व्यक्ति बन गया हो या कोई बल से शक्तिशाली बन गया हो आदि ऐसे व्यक्ति जीवन में महान नहीं बन सकते हैं । नारियल और खजूर के पेड़ बहुत बड़े होते हैं पर वो किसी पथिक को छाया प्रदान नहीं करते हैं ।वो केवल ऊँचाई में बड़े हैं पर धूप में किसी को छाँव नहीं देते वैसे ही अमीर की चौखट से भिखारी ख़ाली हाथ लौटे वो कभी बड़ा इंसान नहीं होता है ।और आंतकवादी बहुत बलशाली होते हैं पर उनको कोई अच्छी नज़रों से नहीं देखता हैं क्योंकि हिंसा करना पाप हैं । दुनियाँ में बड़ा वो है जिसके हृदय में करुणा हो जैसे मदर टेरेसा बड़ा वो है जिसके दिल और मन में विनम्रता हो ।जैसे राम और युधिष्ठिर और बड़ा वो है जो किसी भी इंसान की मुसीबत में आशा की किरण बनता हो । जैसे कोरोना काल में कितनों करके दिखाया। ज्ञातअल्प अज्ञात अनन्त है। ज्ञान सिन्धु का कहाँ अन्त है? जीता है जो समभावों में सही अर्थ मे वही संत है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )