चरण-आचरण
चरण-आचरण
कहते है कि जिसका जीवन आचरण अच्छा होता है उसके जीवन में धर्म का वास होता हैं । हर इंसान की दुनिया शुरू होती हैं और ख़त्मभी अगर कोई एक चीज़ की कमी रह जाए तो वह अधूरा कहलाता हैं । आँख इंसान की माँ तो पाँव पिता हैं । इंसान माँ द्वारा दुनियादेखता हैं और पिता द्वारा चलना । उसी प्रकार ज्ञान और क्रिया दोनों का होना आवश्यक होता है। ज्ञान के बिना क्रिया का कोई विशेषमहत्त्व नहीं होता हैं ।और सम्यक् ज्ञान के बिना भला अच्छी क्रिया की कामना की कैसे की जा सकती है।
क्योंकि ज्ञान विहीन क्रिया का मूल्य कम हो सकता है ।इसलिए
ज्ञान हो और फिर उसका आचरण अच्छा हो तो उसका विशेष महत्त्व होता है। ज्ञानपूर्वक क्रिया का पालन सचमुच विद्युत संचार हैं।कषायों का है जंगल, प्रपंच का है दंगल। ज्ञान प्रवर्धमान से चहुँ ओर होता मंगल ही मंगल। हम दूसरों से तो परिवर्तन चाहते हैं पर खुद मेंबदलाव नहीं चाहते है । रोज प्रवचन सुनते हैं पर गुस्सा , लालसाएं आदि अपरम्पार हैं। हम माला रोज फैरते हैं पर ध्यान और कहीं हैं।परिवर्तन हमे खुद में लानाहोगा । ज्ञान का दीपक खुद में जगाना होगा।सद्वविचारों को मनन कर के जीवन में उतारना होगा । तब ही चारोंऔर मंगल ही मंगल होगा। तभी हो सकता है हमारा आचरण पावन व भग्वद् राह का वरण।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )