जीडीपी का चढ़ता ग्राफ, लेकिन आम आदमी क्यों परेशान?
— संजय अग्रवाला, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल
भारत में जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के बीच संबंध एक जटिल और दिलचस्प विषय है, जो न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज और राजनीति के विभिन्न पहलुओं को भी प्रभावित करता है। जब हम आर्थिक विकास की बात करते हैं, तो सबसे पहले जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की चर्चा होती है, क्योंकि यह किसी देश की समग्र आर्थिक स्थिति का सबसे बड़ा सूचक होता है। वहीं, प्रति व्यक्ति आय, जो जीडीपी को देश की कुल जनसंख्या से विभाजित करके निकाली जाती है, एक व्यक्ति की औसत आय को दर्शाती है और यह समाज में भिन्नताओं को उजागर करने में मदद करती है।
भारत की जीडीपी, जो दुनिया में पांचवे स्थान पर है, उसके कई कारण हैं—यह देश कृषि, उद्योग, सेवा और तकनीकी क्षेत्रों में निरंतर विकास कर रहा है। आर्थिक सुधारों के बाद से भारत ने वैश्विक बाजार में अपने पंख फैलाए हैं और इसके परिणामस्वरूप देश का कुल उत्पादन बढ़ा है। परंतु, इस वृद्धि के बावजूद, यदि हम प्रति व्यक्ति आय पर नजर डालें, तो यह स्पष्ट होता है कि भारत की जीडीपी के मुकाबले, इसकी प्रति व्यक्ति आय कहीं न कहीं पीछे है। यह अंतर इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि जीडीपी एक समग्र आंकड़ा है, जबकि प्रति व्यक्ति आय प्रत्येक नागरिक की औसत आय को दर्शाती है। भारत की विशाल जनसंख्या, जो लगभग 140 करोड़ के करीब है, इस असमानता का प्रमुख कारण है। हालांकि जीडीपी में वृद्धि होती है, परंतु इसका लाभ सभी नागरिकों तक समान रूप से नहीं पहुँचता। इस असमान वितरण के कारण, कई लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, जबकि कुछ वर्ग अत्यधिक समृद्ध हो गए हैं। प्रति व्यक्ति आय का स्तर निर्धारण करने में एक और महत्वपूर्ण कारक है—शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच का भेद। शहरी क्षेत्रों में विकास तेजी से हो रहा है, जहाँ उच्च तकनीकी उद्योग और सेवा क्षेत्र पनप रहे हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और सीमित रोजगार अवसरों के कारण प्रति व्यक्ति आय का स्तर अपेक्षाकृत कम है। इस असमानता को कम करने के लिए सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है, जैसे ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ और ‘मेक इन इंडिया’ लेकिन सुधारों में समय लगता है और इसके प्रभाव धीरे-धीरे नजर आते हैं।
भारत में जीडीपी की वृद्धि का एक और पहलू है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारी स्थिति को मजबूत करता है। यह हमारे विदेशी निवेश, व्यापारिक साझेदारियों और वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियों से प्रभावित होता है। जब जीडीपी बढ़ती है, तो देश के लिए अधिक विदेशी निवेश आकर्षित होते हैं, जिससे रोजगार और उद्योगों का विस्तार होता है। यही कारण है कि भारत की जीडीपी लगातार बढ़ती रही है, फिर भी प्रति व्यक्ति आय में उतना सुधार नहीं हो पाया, जितना अपेक्षित था। इसके अतिरिक्त, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रभाव भी इन दोनों पर पड़ता है। जब किसी देश में शिक्षा का स्तर ऊँचा होता है और स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर होती हैं, तो वहाँ के नागरिकों की उत्पादकता भी बढ़ती है, जिससे देश की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय दोनों में वृद्धि हो सकती है। भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के सुधार के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन यहाँ भी असमानताएँ बनी हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और शहरी क्षेत्रों में इन सुविधाओं की उपलब्धता का अंतर, इस असमानता को और बढ़ाता है।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के बीच एक सकारात्मक संबंध होता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि दोनों हमेशा समान गति से बढ़ें। जब किसी देश की जीडीपी बढ़ती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि प्रत्येक नागरिक की आय में भी उसी अनुपात में वृद्धि होगी। इससे यह भी साबित होता है कि आर्थिक विकास का लाभ अगर समान रूप से वितरित नहीं होता, तो सिर्फ जीडीपी के आंकड़े हमें वास्तविक तस्वीर नहीं दिखा सकते। भारत के संदर्भ में, जहां आर्थिक विकास की दर पिछले कुछ वर्षों में तेज रही है, वहीं बेरोजगारी और असमानता भी महत्वपूर्ण मुद्दे बने हुए हैं। यही कारण है कि केवल जीडीपी वृद्धि को लेकर संतुष्ट होना गलत हो सकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास का लाभ सभी तक पहुंचे और इसकी दिशा सिर्फ समृद्धि की ओर ही नहीं बल्कि समावेशी विकास की ओर भी हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की जीडीपी वृद्धि, उसके बाजारों की ताकत और विकासशील सेक्टरों के विस्तार की ओर इशारा करती है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय का सुधार आर्थिक असमानता और सामाजिक समृद्धि के मुद्दे से जुड़ा है। सरकार और नीति निर्माता दोनों को इस अंतर को पाटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि आर्थिक विकास का असली फायदा हर एक भारतीय नागरिक तक पहुँच सके। अंततः, जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय दोनों का ही एक दूसरे के साथ गहरा संबंध है, लेकिन इनका स्तर और गति अलग-अलग हो सकते हैं। यदि भारत अपने विकास को समावेशी बनाने में सफल होता है, तो न केवल जीडीपी बढ़ेगी, बल्कि प्रति व्यक्ति आय में भी सुधार होगा और यह आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक स्थिरता और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।