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विषय आमंत्रित रचना – सावधानी ही सुरक्षा

विषय आमंत्रित रचना – सावधानी ही सुरक्षा ।

जीवन के हर मोड़ पर हर जगह , हर समय हमें सावधानी रखने की जरूरत होती है । जहाँ चुके वहाँ हम खो लिये । घर में हो जाये एकत्रित अनावश्यक सामान तो उनसे हमारा अलगाव अनिवार्य है । अन्यथा व्यर्थ स्थान घेर लेने का वो का कार्य वो करते है । इसको ऐसे समझें हम कुछ आज के इस सर्वाधिक प्रचलित उपकरण मोबाइल का सिद्धान्त जो दिन भर में अनगिन उपयोगी-अनुपयोगी संदेशों का आदान-प्रदान करता है ।हमारी विवेकशीलता हो इसी में कि उपयोगी सामग्री को सहेजें और करें उसका आबंटन । और व्यर्थ सामग्री का करें निष्कासन । इससे लाभान्वित होंगे आम जन-मन और स्वयं हम । इसी युक्ति से पाना हो हमें यदि खुशगवार जीवन तो बेवजह के विचारों के इस कचरे को हटा कर करें मन का प्रक्षालन कर कुछ नया और अच्छा सोचने की जगह बनायें । ताकि क्लेश-द्वेष की बातें पास भी न फटकें और एक सुंदर सृजनात्मक संरचना की सोच में मनोमालिन्य का कचरा न अटके । ज़रूरी है भरने सुविचारों की इस तिजोरी को जो स्वच्छ और रिक्त मन का होना इसमें है ।
हमें एक साफ-सुथरे और सेहतमंद जीवन जीने की युक्ति सावधानीपूर्वक जीवन में अपनानी चाहिये ।हमारे जीवन-व्यवहार में जो उपयोगी है उसे हमें सेव कर लेना चाहिए ।अच्छी आदतों को जीवन पर्यंत रखना चाहिए । जीवन व्यवहार में उपयोगी नहीं है उन्हें जीवन में से हटाने की कोशिश करनी चाहिए । बुरी आदतों को जीवन से हटाना चाहिए। और हमें स्वस्थ जीवनशैली के लाभ के बारे में बताना चाहिए ताकि दूसरे भी अपने जीवन में रहे प्रसन्न। हमारा हर समय किसी भी बुरे कर्म से वह हर हालत में बचने का दृढ़ निश्चय कर सावधान रहने का चिन्तन होना चाहिये । पिछले जन्म में जो हुआ सो हुआ। उसका तो हम अब कुछ नहीं कर सकते है ।पर वर्तमान को तो सही तरीके से सावधानीपूर्वक जी सकते है ।इतना तो हम कर ही सकते हैं । ताकि वर्तमान और अगला जन्म तो सार्थक कर पाएँ । और हमारे को कोई पश्चाताप करने की नौबत न आए। जरा हम यह भी सोचें कि पिछला जन्म हमारा इतना बुरा नहीं था बल्कि उससे हमने इतना पुण्य कमाया था तभी तो इस जन्म में हमने मानव तन पाया है । तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है की बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।। तो फिर हम इतनी सावधानी तो रखें कि इस जन्म में सदा श्रेष्ठ सोचें ।श्रेष्ठ पथ का अनुसरण करें । श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए जिएँ ।और इस जन्म को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाएँ। मन अगर जो मजबूत है तो डर की क्या बिसात है। यदि परमात्मा से सही प्रीत है तो डर के आगे जीत है। नई बहारे होगी जीवन में करना होगा भागीरथ प्रयास ।उगेगा सूरज उम्मीदों का होगा नित नूतन प्रकाश । डर के आगे जीत है रखना तु मन में विश्वास । सात रत्न अनमोल धरोहर है । पहला रत्न निरोगी काय है । तन से मन से भाव से हम स्वस्थ रहे हर पल मुस्काय । यह सूत्र हमारा क़ायम रहे याद हमें यह हरदम । जीवन चमकेगा चमचम संदेश प्रभु का यह अनुपम है । कहते है आत्मसाधना का सेतु शरीर हैं । इसलिए इसका ध्यान रखना ज़रूरी हैं । भूखे पेट भजन ना होये गोपाला इसलिए जीना है तो खाना हैं । जहाँ अमीर इंसान रोटी हज़म करने मिलों चलता है वही ग़रीब रोटी कमाने मिलों दौड़ता हैं ।
यह अवश्य सत्य है की आज के प्रदूषणयुक्त,मिलावट भारी व्यवस्था में पूर्णत; स्वस्थ एवं शुद्ध भोजन पाना एक आकाश-कुसुम की भाँति हैं ।ख़ैर सावधानी कुछ अंशों तक काम कर जाती हैं । इसलिए बंधु- नीति अपनी सुधारो, रीति अपनी सुधारो। वह परिश्रम की असली कमाई कहाँ? स्वार्थ-लिप्सा बढ़ी है सच्चाई कहाँ ?
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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