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क्या है ऊँचा, क्या है पूरा

क्या है ऊँचा, क्या है पूरा
एक घटना प्रसंग किसी एक व्यक्ति ने दूसरे से पूछा कि क्या हैं ऊँचा व क्या है पुरा । दूसरे व्यक्ति ने कहा कि धन हैं ऊँचा और पुरा तो प्रथम ने कहा संस्कार । दूसरे ने कहा संस्कार की बाते बोलने में अच्छी लगती है अगर पैसे है संस्कार नहीं तो सब अच्छा है पैसे हो । प्रथम में कहा आगे पैसे जाते है तो दूसरे ने कहा यहाँ तो मौज कर ले आगे का आगे देखेंगे । यह आज के समय का चलन हो गया है । मकान बड़े बन रहे है लेकिन परिवार सीमित हो रहे हैं । पढ़ाई उच्च से उच्च हो रही है लेकिन विनम्रता घट रही है । दवाईयो का आविष्कार हो रहा है लेकिन बीमारियाँ बढ़ रही हैं । संस्कार से पूरी दुनिया जीत सकते हौ और अहंकार से जीता हुआ भी हार जाते है ।राजनीति आज सामाजिक, आध्यात्मिक, आदि हर क्षेत्र में पसरी है एक दूसरे पर ईर्षा , निन्दा , नीचे दिखाने आदि से कीचड़ उछालना भी जैसे आम बात हो गयी हैं ।
इतना हम तो जाने की यहाँ क्या लेकर हम आये थे और क्या हम लेकर जाएंगे । मुट्ठी बांध के आये थे और हाथ पसारे जाएंगे । यह दो दिन की जिंदगानी है । दो दिन का मेला । इतना तो सोचे हम कि कौन पूरी तरह काबिल है, कौन पूरी तरह पूरा । हर एक शख्स कही न कही किसी तरह थोड़ा अधूरा हैं । हमे हर चीज साफ-साफ चाहिए चाहे वह हवा हो, पानी हो, रास्ता हो, प्रेम हो , माहौल हो आदि – आदि मगर अक़्सर हम चूक जाते है करने में अपने मन को साफ,,जहां गुमान अपने पैर जमा कर बैठा हुआ है । इंसान गुमान न कर क्योंकि तख्ता कभी भी पलट सकता है बाजी कभी भी जीत की हार में बदल सकती है ।महाभारत में भी शाम को युद्ध खत्म होने के बाद सब एक हो जाते थे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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