
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश अध्यक्ष की तलाश आखिर पूरी हो गई. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने योगी सरकार में पंचायती राज मंत्री Bhupendra Singh Chaudhari को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है. यह ताजपोशी यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय राज्य मंत्री भानु प्रताप वर्मा, एमएलसी विजय पाठक और विद्यासागर सोनकर और बीएल वर्मा समेत अन्य के दावे पर गंभीर मंथन के बाद की गई. पिछड़ा, दलित या ब्राह्मण की जगह जाट नेता भूपेंद्र सिंह चौधरी पर मुहर लगाना बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. खुद भूपेंद्र सिंह चौधरी ने प्रदेश बीजेपी की कुर्सी पर बैठने का ख्वाब देखा था, देर से सही गुरुवार को वह पूरा हो गया.
भूपेंद्र सिंह चौधरी के यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर अब यह कहा जा रहा है कि देश के इस सबसे बड़े राज्य में देश की सबसे बड़ी पार्टी के काम का बोझ अपने कंधे पर लेकर उन्होंने कांटों का ताज पहना है. यह जिम्मेदारी उनके लिए उपलब्धि से ज्यादा चुनौती है. उन्हें अब आगामी लोकसभा में यूपी की सभी 80 सीटों को बीजेपी की झोली में डालने का लक्ष्य पूरा करना है. जिसकी सफलता या असफलता के बारे में अभी कोई दावा नहीं किया जा सकता, लेकिन भूपेंद्र चौधरी के अतीत के संदर्भ में देखें तो इस चुनौती को पार कर जाना उनके लिए असंभव भी नहीं है. चौधरी बीजेपी संगठन के मंजे हुए नेता माने जाते हैं. वह संघ की पृष्ठभूमि से आए हैं. जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर चौधरी ने अपना सियासी सफर शुरू किया और अब वह साल 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूपी में सेनापति होंगे और वह यूपी में सीएम योगी के साथ मिलकर यूपी को विपक्ष विहीन बनाने में जुटेंगे.
निचले स्तर तक संगठन में जुड़े, तभी रेस में आगे
यूपी के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी की पहचान पार्टी के अंदर निचले स्तर तक संगठन को सक्रिय रखते हुए सफलता की तरफ बढ़ने वाले नेता की है, जिसने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की रेस में आगे खड़ा कर दिया. हालांकि, वह खुद अभी तक विधायक का चुनाव नहीं जीत सके हैं. पहली बार साल 2009 में विधानसभा का चुनाव लड़े. बीजेपी ने उन्हें पश्चिमी मुरादाबाद सीट से उपचुनाव में उतारा था, लेकिन वह चुनाव नहीं जीत सके. ऐसे में बीजेपी ने उन्हें संगठन के कार्य में लगाए रखा. पश्चिम क्षेत्र का अध्यक्ष रहते हुए उनके राजनीतिक कौशल से 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को पहली बार पश्चिमी यूपी की सभी सीटों पर जीत हासिल हुई थी. भूपेंद्र सिंह चौधरी के पार्टी के प्रति समर्पण को देखते हुए साल 2016 में विधान परिषद सदस्य बनाकर यूपी के उच्च सदन में भेजा. 2017 में पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय में अहम रोल अदा करने के चलते उनको योगी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. 2022 में योगी सरकार दोबारा बनी तो उन्हें दोबारा से कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इसके बाद 2022 में उन्हें दोबारा विधान परिषद भेजा गया है.
पश्चिम यूपी के लिए सटीक हैं ‘चौधरी’
पार्टी का मानना है कि साल 2024 के चुनावों के लिए बीजेपी की राजनीतिक जरूरतों के लिहाज से भूपेंद्र चौधरी पश्चिम उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति साबित होंगे. बीजेपी में भूपेंद्र चौधरी पश्चिमी यूपी में जाट राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं. जाट मतदाताओं को साधने और उनके साथ ही अन्य मतदाताओं को साथ जोड़कर चलने के कारण भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी नेतृत्व ने उन्हें बड़ा दावेदार माना. जिसके चलते उन्हें यह अहम जिम्मेदारी देना का फैसला किया गया. बीजेपी के सामने यूपी में विपक्ष का बड़ा केंद्र इस समय जाटलैंड यानी पश्चिमी यूपी ही है. इस क्षेत्र में प्रमुख विपक्षी दल सपा और रालोद का मजबूत गठजोड़ है. लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से बीजेपी 7 सीटें हार गई थी. 2024 आम चुनाव में बीजेपी 2019 की कमियों को सुधारने की कोशिश में है. पश्चिम ने विपक्ष के गठजोड़ को तोड़ने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम यूपी के 22 जिलों की जिम्मेदारी ली है. अब भूपेंद्र चौधरी भी उनके साथ खड़े दिखेंगे. पश्चिम यूपी में विपक्ष की ताकत को कमतर करने में चौधरी भी अहम भूमिका निभाएंगे.
रालोद के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए BJP की प्लानिंग
भूपेंद्र चौधरी 2012 विधानसभा चुनाव, 2014 आम चुनाव और 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पश्चिमी क्षेत्र के अध्यक्ष रहे थे. इसके बाद से प्रदेश में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से लगातार दूसरी बार मंत्री हैं. 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिमी यूपी में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी. विधानसभा चुनाव में उन्हें सहारनपुर मंडल में लगाया गया था, इस क्षेत्र में किसानों का विरोध पार्टी को झेलना पड़ रहा था, जिसे बहुत हद तक कम करने में भूपेंद्र चौधरी को सफलता मिली थी. भूपेंद्र चौधरी को पार्टी ने अहम जिम्मेदारी देकर पश्चिमी यूपी में जाट मतदाताओं खासकर रालोद के वोट बैंक में सेंध लगाने के साथ बीजेपी की पैठ बनाने की बड़ी रणनीति मानी जा रही है. इसे सपा और रालोद के गठजोड़ को कमजोर करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. विपक्ष द्वारा बार-बार पश्चिम से खड़े किए जा रहे किसान आंदोलन को भी कमजोर करने में मदद मिलेगी.
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