महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष-
परम कल्याणकारी – भगवान शिव
मृत्युंजय दीक्षित
महाशिवरात्रि का पावन पर्व फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव होने से यह पर्व महाशिवरात्रि के नाम से लोकप्रिय हुआ। यह शिव और पार्वती के विवाह के रूप में हर घर में मनाया जाता है। इस पवित्र दिन पूरा भारत शिवभक्ति में तल्लीन हो जाता है और भगवान शिव के चरणों में अपने आप को अर्पित कर पुण्य अर्जित करना चाहता है।
महाशिवरात्रि का पर्व उत्तर में काश्मीर लेकर दक्षिण के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी मंदिरों में भव्य रूप से मनाया जाता है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर सहित देश के विभिन्न प्रान्तों में स्थित समस्त द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शिव भक्तों की महा भीड़ उमड़ती है। भारत के गाँव गाँव और गली गली में भगवान शिव के छोटे – बड़े मंदिर विद्यमान हैं और ऐसा ही मनोरम दृष्य प्रत्येक शिवाले का रहता है। भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के शिव मंदिरों में भी यह पर्व मनाया जाता है। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में यह पर्व व्यापक रूप में मनाया जाता है तथा भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है।
शिवरात्रि व्रत व भगवान शिव की महिमा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। भगवान शिव की महिमा वेदों में भी कही गयी है। उपनिषदों में भी शिव जी की महिमा का वर्णन मिलता है। रूद्रहृदय, दक्षिणामूर्ति , नीलरूद्रोपनिषद आदि उपनिषदों में शिवजी की महिमा का वर्णन मिलता है । भगवान शिव ने अपने श्रीमुख से शिवरात्रि व्रत की महिमा का वर्णन स्वयं ब्रहमा, विष्णु और पार्वती जी को किया है। निष्काम तथा सकाम भाव से सभी व्यक्तियों के लिए यह महान व्रत परम हितकारक माना गया है।
महादेव जी थोड़ा सा जल और बेलपत्र पाकर भी संतुष्ट हो जाते हैं । वे सभी के कल्याण स्वरूप हैं। इसलिए सभी को शिवजी की पूजा करनी चाहिये। शिव जी सभी को सौभाग्य प्रदान करने वाले हैं भगवान शिव कार्य और करण से परे हैं। ये निर्गुंण, निराकार,निर्बाध, निर्विकल्प निरीह, निरंजन, निष्काम, निराधार तथा सदा नित्यमुक्त हैं। भगवान शिव पंचाक्षर और षडाक्षर मंत्र हैं तथा केवल ऊँ नमः शिवाय कहने मात्र से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव सर्वोपरि देव हैं। सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। सम्पूर्ण विश्व शिवकृपा से ही पाश मुक्त हो सकता है। भगवान श्री शिव की उपासना के बिना साधक अभीष्ट लाभ नहीं प्राप्त कर सकता। शिवोपासना के द्वारा ही परम तत्व शिवत्त्व की प्राप्ति संभव है।
जब से सृष्टि की रचना हुई हैं तब से भगवान शिव की आराधना व उनकी महिमा की गाथाओं से भण्डार भरे पड़े हैं। स्वयं भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण ने भी अपने कार्यों की बाधारहित सिद्धि के लिये उनकी साधना की और शिव जी के शरणागत हुए। भगवान श्रीराम ने लंका विजय के पूर्व भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव के भक्तों व उनकी आराधना की कहानियां हमारे पुराणों व धर्मग्रथों में भरी पड़ी है। जो भी व्यक्ति चाहे वह कैसा भी हो या फिर किसी भी दृष्टि से उसने भगवान शिव की आराधना की हो भगवान शिव ने आराधना से प्रसन्न होकर सभी को आशीर्वाद दिया। यदि किसी ने उनके आशीर्वाद का गलत उपयोग किया तो उन्होनें उसका उसी रूप में निराकरण भी किया। सभी कहानियों का सार यही है कि भगवान शिव अपने भक्तों की पुकार अवश्य सुनते हैं। भगवान शिव ने देवराज इंद्र पर कृपादृष्टि डाली तो उन्होनें अग्निदेव, देवगुरू, बृहस्पति और मार्कण्डेय पर भी कृपादृष्टि डाली।
हिंदी कवियों ने भी भगवान शिव की स्तुति व महिमा का गुणगान किया है। हिंदी के आदि कवि चंदवरदाई ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराज रासो के प्रथम खंड आदिकथा में भगवान शिव की वंदना की है। महान कवि विद्यापति ने भी अपने पदों में भगवान शिव का ही ध्यान रखा है। महान कवि सूरदास ने भी शिवभक्ति प्रकट की है। भगवान शिव की महिमा का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने भी किया है। सिख धर्म के अंतिम गुरू गोविंद सिंह महाराज द्वारा लिखित दशम ग्रन्थ साहिब में भी शिवोपासना का विशेष वर्णन मिलता है।
भगवान शिव परम कल्याणकारी है। जगदगुरू हैं। वे सर्वोपरि तथा सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। उन्हांने इस समस्त संसार व सांसारिक घटनाओं का निर्माण किया है। सांसारिक विषय भोगों से मनुष्य बंधा है तथा शिवकृपा से ही वह पापमुक्त हो सकता है। भगवान शिव जब प्रसन्न होते हैं तो साधक को अपनी दिव्य श्क्ति प्रदान करते हैं जिससे अविद्या के अंधकार का नाश हो जाता है और साधक को अपने इष्ट की प्राप्ति होती है।।इसका तात्पर्य यह है कि जब तक मनुष्य शिव जी को प्रसन्न करके उनकी कृपा का पात्र नहीं बन जाता तब तक उसे ईश्वरीय साक्षात्कार नहीं हो सकता।
अतः कहा जा सकता है कि ज्ञान और भक्ति इन तीनों के परमार्थ तथा सभी विद्याओं, शास्त्रों , कलाओं और ज्ञान- विज्ञान के प्रवर्तक आशुतोष भगवान शिव की आराधना के बिना साधक अभीष्ट लाभ नहीं प्राप्त कर सकता। शिवोपासना के द्वारा ही परम तत्व अथव शिवतत्व की प्राप्ति संभव है। भगवान शिव अपने भक्त की आराधना से भी प्रसन्न होकर उसका तत्क्षण परम कल्याणकर देते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शिव पूजन और व्रत करना चाहिये।
परात्पर सचिचदानंद परमेश्वर शिव एक है। वे विश्वातीत भी हैं और विश्वमय भी । वे गुणातीत और गुणमय भी हैं। भगवान शिव में ही विश्व का विकास संभव है। भगवान शिव शुद्ध, सनातन, विज्ञानानन्दघन, परब्रम्ह हैं उनकी आराधना परम लाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिये। सांसारिक हानि- लाभ प्रारब्ध होते हैं इनके लिए चिंता करने की बात नहीं । शिव जी की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जायेंगे। अत : किसी भी प्रकार के कर्मों की पूर्णता के लिये न तो चिंता करनी चाहिये और नहीं भगवान से उनके नाशार्थ प्रार्थना ही करनी चाहिये। “ऊँ नमः शिवाय” या फिर अपनी जिहवा पर शिव मात्र का स्मरण करने से व्यक्ति सांसारिक चिंताओं से मुक्त हो सकता है। अतः परम कल्याणकारी सृष्टिकर्ता व पूरे विश्व के नीति नियंतक भगवान शिव की आराधना तन, मन, धन से एकाग्रचित होकर करनी चाहिये ।