नई दिल्ली। इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस (Pegasus spyware) का राजनेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की जासूसी करने के लिए कथित तौर पर इस्तेमाल के आरोपों की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की कमेटी (Supreme court technical committee) ने अंतरिम रिपोर्ट (interim report) सौंप दी है। सुप्रीम कोर्ट ने टेक्निकल कमेटी का गठन सरकार पर जासूसी कराने के आरोपों की जांच के लिए किया था।
जस्टिस रमना (CJI Justice NV Ramana) की बेंच करेगी 23 फरवरी को सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ 23 फरवरी को सुनवाई के लिए लंबित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी और अंतरिम रिपोर्ट पर विचार करेगी। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस द्वारा जासूसी के आरोपों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ तकनीकी समिति नियुक्त की थी।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि कानून के शासन द्वारा शासित लोकतांत्रिक देश में व्यक्तियों पर अंधाधुंध जासूसी की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया था। कमेटी बनाते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र द्वारा इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं करने की अनुपस्थिति में, अदालत के पास एक विशेषज्ञ पैनल गठित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में…
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं, जहां व्यक्तियों का पूरा जीवन क्लाउड या डिजिटल डोजियर में संग्रहित होता है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि जहां प्रौद्योगिकी लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक उपयोगी उपकरण है, वहीं इसका उपयोग किसी व्यक्ति के उस पवित्र निजी स्थान को भंग करने के लिए भी किया जा सकता है। CJI रमना ने कहा था कि सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों को निजता की उचित उम्मीद होती है।
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि गोपनीयता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की एकमात्र चिंता नहीं है। भारत के प्रत्येक नागरिक को निजता के उल्लंघन से बचाना चाहिए। यह अपेक्षा ही है जो हमें अपनी पसंद, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है। अन्य सभी मौलिक अधिकारों की तरह, इस न्यायालय को भी यह मानना होगा कि जब निजता के अधिकार की बात आती है तो कुछ सीमाएँ भी मौजूद होती हैं। लगाए गए किसी भी प्रतिबंध को अनिवार्य रूप से संवैधानिक जांच से गुजरना होगा।
अन्य सभी मौलिक अधिकारों की तरह निजता भी
कोर्ट ने कहा कि अन्य सभी मौलिक अधिकारों की तरह इस न्यायालय को यह स्वीकार करना चाहिए कि निजता के अधिकार के मामले में भी कुछ सीमाएं मौजूद हैं। हालांकि, लगाए गए किसी भी प्रतिबंध को आवश्यक रूप से संवैधानिक जांच से गुजरना होगा। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह सुनिश्चित करना राज्य के हित का संज्ञान है कि जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है और इसमें संतुलन होना चाहिए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि निगरानी और यह ज्ञान कि किसी पर जासूसी का खतरा है, यह प्रभावित कर सकता है कि कोई व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग करने का फैसला करता है और इस तरह के परिदृश्य के परिणामस्वरूप आत्म-सेंसरशिप हो सकती है।
हम केवल मूकदर्शक नहीं रह सकते
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य द्वारा केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का आह्वान करने से न्यायालय मूकदर्शक नहीं बन जाता है। इसने आगे नोट किया था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिपादित केंद्र द्वारा किसी भी तथ्य का कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है।
केंद्र ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दे हलफनामा भी नहीं दिया
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इस मुद्दे पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, केंद्र ने पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि वह कथित पेगासस जासूसी विवाद के सभी पहलुओं की जांच के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने को तैयार है। इसने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में इंटरसेप्शन के लिए किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया था, यह सार्वजनिक बहस के लिए खुला नहीं हो सकता।
इन लोगों ने दायर की थी याचिका
वरिष्ठ पत्रकार एन राम और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास और अधिवक्ता एमएल शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, आरएसएस विचारक केएन गोविंदाचार्य द्वारा पेगासस जासूसी केस में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की थी।
इसके अलावा पेगासस जासूसी कराए जाने की लिस्ट में शामिल पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और इप्सा शताक्षी ने भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के साथ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में कथित जासूसी की जांच के लिए शीर्ष अदालत के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच की मांग की गई है।
दलीलों में कहा गया है कि सैन्य-ग्रेड स्पाइवेयर का उपयोग करके लक्षित निगरानी निजता के अधिकार का अस्वीकार्य उल्लंघन है जिसे केएस पुट्टास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार माना गया है।
इस तरह मामला पकड़ा तूल
बता दें कि वैश्विक स्वतंत्र पत्रकारों के एक संगठन ने पेगासस जासूसी कांड पर रिपोर्ट्स की एक सीरीज छापी थी। इसमें बताया गया था कि पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर दुनिया के तमाम देशों में विभिन्न पेशेवरों, समाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं की निगरानी की गई थी। भारत में भी दर्जनों दिग्गजों के फोन नंबर्स से निगरानी की बात सामने आई थी। हालांकि, इस जासूसी कांड का खुलासा होने के बाद पेगासस साफ्टवेयर बनाने वाली इजरायली कंपनी ने यह साफ कर दिया था कि वह साफ्टवेयर केवल सरकारों को बेचती है। यह खुलासा होने के बाद दुनिया के देशों में हंगामा मच गया। भारत में भी विपक्ष ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए। सरकार के अस्पष्ट रूख के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया।
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