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कुछ पढ़ी, कुछ सुनी

कुछ पढ़ी, कुछ सुनी

विज्ञान भौतिक जगत में हमको नित नये – नये सुविधावादी उपकरण दे सकता है लेकिन मानसिक शांति तो आज भी हमे प्रकृति की गौद में ही मिलती है । आज के चलन के हिसाब से सोच हो गई है कि इच्छापूर्ति ही सुख हैं । इसके लिये जब जहाँ जैसे सम्भव हो हम अधिकाधिक भौतिक साधनों के संग्रह में परम सुख मानते हैं।आधुनिक विज्ञान ने तो इस विचारधारा में सोच को सीमेंट लगाने का काम किया है तथा इसके साथ – साथ में आदमी की इस भ्रांति को और पक्का किया है।यह तथ्य है कि इच्छाएँ हमारी अन्तहीन हैं। जबकि शास्त्र वचन है कि जब तक इच्छाएँ अनन्त हैं आदमी सदैव शान्ति विहीन रहेगा । क्योंकि अशांत आदमी कभी भी सुखी हो ही नहीं सकता हैं । अतृप्ति की वेदना से वह हमेशा दुखी रहता है ।शांति एक अलग ही भीतर में रहने वाली अनुभूति हैं जो प्रकृति की गौद में बैठकर हमें अंतर्मन की गहन आनंदानुभूति देती हैं ।यह हमें सदैव अपने आप में रमकर विज्ञान जगत से दूर भीतर में अनिच्छा से ही प्राप्त होती हैं । विज्ञान जगत में लिप्तता कि इच्छापूर्ती से तो मात्र क्षणिक सुखानुभूति ही होती है । हम यह क्यों भूल जाते हैं कि जीवन का हर दिन ही एक अवसर हैं । अगर मन में दृढ़ निश्चय हो तो सुअवसर रचनात्मक बनने का जीवन में कुछ नूतन पेंटिंग उकेरने का मन-मस्तिष्क के कैनवास पर अच्छी सी सुखद संभावनाओं से जैसे सम्भव हो अपना भविष्य हम बदल सकते हैं । हमारे विचार और भावनाएँ हमारे रंग और ब्रुश हैं , साथ में हमारे मन की भावनाओं का स्पर्श चित्र का विषय है।इन सबको मिलाकर जो पेंटिंग-कृति बनकर उभरेगी वह हमारे स्वयं की भावनाओं की सजीव आकृति होगी ।यह सम्भव होगा भीतर में अटूट , बेजोड़ आदि लक्ष्यों के होने से ।इस तरह कभी-कभी कुछ बातें जो पढ़ी जाती हैं, सुनी जाती हैं , देखी जाती है आदि – आदि मस्तिष्क में वह गहरी बैठ जाती है ।रह-रह कर वह उभर-उभर कर मेरे सामने आती रहती हैं।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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